बिलक़िस बानो रेप मामले में दोषी 11 क़ैदियों की रिहाई के फ़ैसले पर गुजरात सरकार को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। उम्रक़ैद की सजा झेल रहे इन क़ैदियों को 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था।
सरकार के इस फ़ैसले पर जानकारी के अभाव में सोशल मीडिया पर एक पक्ष न्यायपालिका को भी दोषी ठहरा रहा है। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा है कि सजा तय करने वाली बेंच का हिस्सा रही bombay हाईकोर्ट की पूर्व जज Mridula Bhatkar को सामने आकर ऐसा ना करने की गुहार तक लगानी पड़ी है।
क्या है मामला
11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने 15 साल से अधिक की सजा काटने के बाद 1992 gujrat remission policy के तहत सज़ा माफ़ी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सज़ा माफ़ी के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था। गुजरात सरकार ने पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायात्रा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने मामले के सभी 11 दोषियों की सज़ा माफ़ करने के पक्ष में सर्वसम्मत फ़ैसला लिया और उन्हें रिहा करने की सिफ़ारिश की.
सजा पूरा होने से पहले ही क़ैदियों को छोड़ने का यह रिवाज पुराना है। गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती सहित महत्वपूर्ण अवसरों पर उम्रदराज़ या बीमार और अच्छा आचरण करने वाले कैदियों को सजा की छूट दी जाती है। इस साल, जून में नोटिफ़िकेशन जारी कर केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के जश्न के रूप में कैदियों को विशेष छूट देने के लिए दिशानिर्देश जारी किया था। लेकिन इस निर्देश में यह स्पष्ट है कि वह रेप के मामले में दोषी या उम्रक़ैद प्राप्त क़ैदियों को छूट नहीं दे सकते।
2014 में बने गुजरात के नए remission पॉलिसी के तहत भी ऐसे क़ैदियों को छूट नहीं दी जा सकती है। फिर बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आख़िर किस प्रावधान के तहत गुजरात सरकार ने क़ैदियों की रिहाई की है।
पुरानी पॉलिसी के तहत लिया फ़ैसला
गुजरात में क़ैदियों को माफ़ी देने के लिए पहली पॉलिसी 1992 में बनाई गई थी। इस पॉलिसी में माफ़ी योग्य क़ैदियों की कैटेगॉरी को लेकर कोई क्लैरिटी नहीं थी। 2014 में दोबारा इसे संशोधित कर नई पॉलिसी बनाई गई। इस पॉलिसी में माफ़ी योग्य क़ैदियों की कैटेगॉरी को भी जोड़ा गया। अगर सरकार नई पॉलिसी के हिसाब से निर्णय लेती तो इन 11 क़ैदियों को छूट नहीं मिलती। सरकार ने नई पॉलिसी लागू होने के बावजूद 1992 की पुरानी पॉलिसी के अनुसार फ़ैसला लिया।
गृह विभाग ने क्या कहा
गुजरात के अतिरिक्त गृह मुख्य सचिव, राज कुमार के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इन 11 दोषियों को राज्य की पुरानी रेमिशन पॉलिसी के तहत रिहा करने पर विचार करने को कहा था। पीटीआई को दिए अपने बयान में अतिरिक्त मुख्य सचिव ने बताया कि 11 लोगों को जब मुंबई की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया तब राज्य में पुरानी रेमिशन पॉलिसी लागू थी। इसी लिए SC ने हमें 1992 की नीति के तहत रिहाई के बारे में निर्णय लेने का निर्देश दिया।
आलोचना का करना पड़ रहा है सामना
गुजरात सरकार को इस निर्णय के बाद काफ़ी आलोचना भी झेलनी पड़ रही है। सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ महिला संगठनों और 6000 लोगों ने चीफ़ जस्टिस ओफ़ इंडिया एनवी रमना को पत्र लिखा है। उन्होंने ने सुप्रीम कोर्ट से 11 क़ैदियों को वापस जेल भेजने की माँग की है।
लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद हुआ था फ़ैसला
गोधरा दंगों के दौरान, तीन मार्च, 2002 को खेत में छिपे बिलकिस और उनके परिवार वालों पर 20-30 लोगों ने हमला किया था। बिलकिस व उसकी माँ सहित चार महिलाओं को पहले मारा गया और फिर उनके साथ दोषियों ने रेप किया। इस हमले में वहां मौजूद 17 मुसलमानों में से सात मारे गए, इनमें बिलकिस की तीन साल की बेटी भी शामिल थी.
इस घटना के बाद बिलक़िस बानो ने एक लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ी। 2008 में दोषियों को निचली अदालत ने सजा सुनाई जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकार रखा।