और जब शादी वैध है या फिर अमान्य करार नहीं दी जा सकती तब अगर दोनों पक्ष आपस में अलग होना चाहें तो इस बारे मे हमारा कानून क्या कहता है।
तलाक (Divorce) के बारे में हम सब जानते हैं न्यायिक अलगाव भी एक ऐसा विकल्प है जहां कोर्ट की इजाजत से दोनों पक्ष एक दूसरे से अलग रहने की अनुमति ले सकते हैं । लेकिन इसे तलाक करार नहीं दिया जाता। एक वैध शादी के बाद भी पति या पत्नी मे से कोई भी किसी एक को बिना जायज कारण के छोड़ कर चल जाता है। तो ऐसे में दूसरा व्यक्ति कोर्ट से अपने दम्पत्ति अधिकारों के अधिकारों की मांग कर सकता है यानि वैवाहिक अधिकार के बहाल करने को लेकर मांग कर सकता या कर सकती है।
अगर कोई व्यक्ति तलाक लेने या ना लेने को लेकर दुविधा है लेकिन फैसला लेने तक वह दूसरे पक्ष के साथ नहीं रहना चाहता। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति के पास कोर्ट से वैवाहिक अधिकार की मांग करने का विकल्प होता है. यह जरूरी नहीं है तलाक लेने के लिए लंबी लड़ाई ही लड़नी पड़े। आपसी सहमति से भी बहुत जल्द तलाक की प्रक्रिया पूरा किया जा सकता है। जहां दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक लेने की स्थिति में नहीं होते हैं। वहाँ वो एकतरफा तलाक की अर्जी दे सकते हैं। ये अर्जी शादी के कम से कम 1 साल बाद ही कोर्ट में दी जा सकती है।
जानिए तलाक लेने के आधार क्या हो सकते हैं.
तालाक के मामलों में सबसे ज्यादा मामले उत्पीड़न के कारण आते हैं, शारीरिक उत्पीड़न व घरेलू हिंसा के बढते मामलों के कारण कोर्ट ने समय समय पर परिस्थितियों को देखते हुए इसमें बदलाव किये हैं अब शारीरिक उत्पीड़न के अलावा तक सीमित नहीं है। यदि शादी के बाद किसी पक्ष ने अपनी इच्छा से और बिना किसी दवाब के अपने पति या पत्नी के अलावा किसी और से शारीरिक संबंध बनाए हों तो उस आधार पर तलाक की मांग कर सकते हैं। जहां बिना किसी जायज कारण के कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष को छोड़ दे। और ऐसा लगातार 2 साल तक हो। तब इस आधार पर भी तलाक की मांग की जा सकती है। अगर कोई पक्ष अपना धर्म परिवर्तन कर हिन्दू धर्म को त्यागता है। तो दूसरा पक्ष इस आधार पर तलाक मांग सकता है। लेकिन तलाक के लिए जानबूझकर धर्म परिवर्तन कर आप दूसरे पक्ष को तलाक देने पर मजबूर नहीं कर सकते। अगर कोई पक्ष ऐसे मानसिक रोग से ग्रसित हो जिसकी वजह वह ऐसा कृत्य करता हो जो घातक और गैर जिम्मेदाराना हो तब इस आधार पर भी तलाक की मांग कर सकते हैं। अगर कोई पक्ष कुष्ठ रोग या यौन रोग से ग्रसित है तो यह भी एक ग्राउन्ड हो सकता है। अगर किसी पक्ष ने ग्रहस्थ आश्रम का परित्याग कर दिया हो यानि की किसी धार्मिक आश्रम से जुड़ गया हो या फिर पिछले सात सालों में व्यक्ति के जीवित होने की कोई खबर ना हो। तो इन कारणों के चलते तलाक की अर्जी accept हो सकती है।
जहां कोर्ट दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन (Restitution of conjugal rights) की डिग्री पास कर चुका हो, और दोनों पक्ष एक दूसरे से एक साल से अलग रह रहे हों। और उनके बीच दम्पत्ति आधिकार प्रतिष्थापित नहीं हुआ हो तो भी कोर्ट तलाक की अर्जी मान्य कर सकता है। इस कानून में महिलाओं को कुछ अलग अधिकार दिए गए हैं जो पुरुषों को नहीं दिए गए हैं – जैसे शादी के दौरान अगर पति पर रेप या सूडोमी जैसे अपराध साबित हो गए हों तो पत्नी को तलाक तलाक मांगने का अधिकार है। अगर किसी लड़की की शादी 15 साल की उम्र में ही कर दि गई हो तो लड़की 18 साल की होने से पहले उस रिश्ते को खत्म करने का अधिकार रखती है ।
बच्चों की कस्टडी (custody) को लेकर हमारा कानून क्या कहता है ?
इस कानून के सेक्शन 26 में आप कोर्ट से अंतरिम ऑर्डर की मांग कर सकते हैं। जिसमे कोर्ट समय-समय पर अंतरिम आदेशों को बदल सकता है। कोर्ट कस्टडी (custody), मेन्टीनेंस (maintenance) और बच्चों की शिक्षा (education) को लेकर आदेश करते समय बच्चों की इच्छा को भी ध्यान में रखता है लेकिन सबसे ज्यादा अहमियत इस बात को दी जाती है की फैसला बच्चों के हित में होना चाहिये और माँ बाप की लड़ाई के बीच बच्चों को कम से कम हानि हो। तलाक की याचिकायों पर फैसला सुनते वक्त कोर्ट ने कुछ बातों को साफ किया है, जैसे की हर केस को एक तराजू में नहीं तौला जा सकता है और क्रूरता (cruelty) के मायने लोगों के लिए अलग अलग होंगे। और इसी वजह से हर केस के लिए अलग नजरिया रखना होगा।