जानिए Hindu Marriage Act 1955, शादी-शुदा लोगों को पता होना चाहिए इससे जुड़े कानूनों के बारे में ।

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भारत में ज़्यादातर हिंदू लोगों को यह नहीं पता होगा की, उनकी शादी हमारे संविधान के तहत बाक़ायदा  क़ानूनन होती है। विवाह हमारे यहाँ सिर्फ़ धार्मिक नहीं बल्कि कानूनी प्रक्रिया भी है। हिन्दू शादी अधिनियम (Hindu Marriage Act 1955), शादी या तलाक़ से जुड़े मामलों को लेकर जब आप कोर्ट जाते हैं तब इसी ऐक्ट के तहत आपकी सुनवाई की प्रक्रिया होती है। हिन्दू शादी ऐक्ट के नाम पर मत जाइएगा क्यूंकी इस ऐक्ट के सिर्फ हिन्दू ही बल्कि इसके अंतर्गत बौद्ध, जैन, सिख भी आते हैं । 

Hindu Marriage Act 1955

हिंदू मैरीज़ ऐक्ट के हिसाब से क़ानूनी रूप से कौन शादी के योग्य है?

हिंदू शादी अधिनियम के सेक्शन 5 के अनुसार कोई शादी तभी वैध मानी जाएगी, जब लड़का और लड़की पहले से शादीशुदा नहीं हों और अगर शादी हुई भी हो तो तलाक हो चुका हो या फिर महिला और उसके पति के पति य पत्नी (Spouse) जीवित ना हों। उम्र की बात की जाए तो लड़के की 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए।

इस ऐक्ट के अनुसार आप अपने ब्लड रिलेशन (Blood Relation) और पूर्वजों (ancestors) के परिवार में शादी नहीं कर सकते। ब्लड रिलेशन में सगे भाई-बहन, सगे बुआ के लड़के, सगे मामा के लड़के या चचेरे भाई बहन आदि आते हैं। पूर्वजों में भी एक तय सीमा तक ही रोक लगाई गई है। जैसे पिता के साइड से 5 वीं पीढ़ी तक और माता की साइड से तीसरी पीढ़ी तक ही शादी पर रोक है। अगर दोनों में से कोई भी स्तिथि का उल्लंघन हुआ तो ऐसी शादी कानूनन मान्य नहीं होगी। शादी के समय अगर लड़की या लड़का कोई भी मानसिक रूप से बीमार है तो उसकी सहमति भी वैध नहीं मानी जाएगी। अगर मामला नपुंसकता का हो या शादी जबरदस्ती या फिर धोखे से झूठ बोलकर कराई गई हो या शादी के समय लड़की किसी और से गर्भधारण की हो तो इन सभी कारणों में आप शादी के एक साल के भीतर ही शादी को अमान्य घोषित करने के लिए कोर्ट जा सकते हैं। हालाँकि प्रेग्नेन्सी के केस में पति को कोर्ट में यह साबित करना होगा की शादी के समय वह लड़की के प्रेग्नेंट होने से अंजान था और इस बात की जानकारी के बाद उसने अपनी इच्छा से लड़की से कोई संबंध नही बनाए।

क्या मैरिज रजिस्ट्रेशन के बिना शादी वैध मानी जाएगी?

हिन्दू शादी अधिनियम (Hindu Marriage Act 1955) में मैरिज रेजिस्ट्रैशन जरूरी तो है लेकिन ऐसा नही है रेजिस्ट्रेशन ना होने के कारण शादी अमान्य हो जाएगी। अगर धर्म के रीति रिवाज के अनुसार शादी हुई है तो वह किसी भी स्थिति में मान्य होगी। जैसे हिंदू धर्म में 7 फेरे लिए जाने का रिवाज होता है सातवें फेरे के बाद ऐसी शादी को सम्पन्न माना जाएगा और इसी तरह कुछ अलग प्रथाओं को भी इस ऐक्ट में वैध माना गया जिसमे एक दूसरे को माला पहनना या अंगूठी पहनाना शामिल है। हिन्दू शादी अधिनियम (Hindu Marriage Act 1955) में भले ही शादी को अमान्य करार देने के प्रावधान हैं लेकिन कानून में इस बात का खास खयाल रखा गया है कि ऐसी शादी के दौरान जन्म ले चुके बच्चे नाजायज नही होंगे। शादी में अगर कोई समस्या आती है तो उस केस में पति या पत्नी के पास कोर्ट जाने का अधिकार है। ऐसे किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण मामलों को देखने के लिए भारतीय न्याय व्यवस्था में फ़ैमिली कोर्ट (Family Court) का गठन किया गया है। जहां शादी को लेकर उत्पन्न होने वाली किसी भी क़ानूनी समस्या पर सुनवाई की जाती है। इनमें पति- पत्नी के बीच के छोटे मोटे मन-मटाव से लेकर तलाक़ तक के मामलों की सुनवाई की जाती है। 

Prakher Pandey
Prakher Pandey

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