गलत क़ानूनी सलाह पर एडवोकेट्स पर नहीं दर्ज होगा मुक़दमा

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दिल्ली- राजस्थान हाईकोर्ट ने गलत क़ानूनी सलाह दिए जाने को लेकर एडवोकेट पर आपराधिक कार्यवाही करने से इनकार कर दिया है। एक एडवोकेट द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने कहा कि ग़लत क़ानूनी सलाह के आधार पर कोर्ट किसी एडवोकेट पर आईपीसी के तहत कार्यवाही नहीं कर सकता लेकिन अगर वकील के ख़िलाफ़ सबूत मिलते हैं तो घोर लापरवाही और प्रोफेशनल मिसकंडक्ट का आरोप लगाया जा सकता है।

ट्रायल कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) और 13 (2) और आईपीसी की धारा 120 बी के तहत एडवोकेट पर आरोप तय किया था। जिसके ख़िलाफ़ एडवोकेट ने राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

नगर पालिका के अनुसार एक भूमि के सम्बंध में याचिकाकर्ता एडवोकेट द्वारा दी गई क़ानूनी सलाह के कारण विभाग को ₹7.18 लाख का नुक़सान हुआ है। नगर पालिका ने एडवोकेट पर दूसरे पक्ष के साथ मिलीभगत कर आर्थिक लाभ के बदले में गलत क़ानूनी सलाह देने का आरोप लगाया है।

कोर्ट ने यह माना कि एक वकील को उसके पेशेवर सलाह के लिए ज़िम्मेदार ठहराए जाने और कार्यवाही करने की स्थिति में एडवोकेट्स के मन में डर पैदा होगा और वे सलाह देने में संकोच करेंगे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसीएशन के पूर्व सेक्रेटेरी के सी कौशिक ने राजस्थान हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराया है। Indian  Legal Reporter से बातचीत के दौरान केसी कौशिक ने कहा कि “एडवोकेट ऐक्ट के तहत किसी एडवोकेट पर ऐसी स्थिति में सिर्फ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है, क्रिमिनल ऐक्शन लेने का कोई प्रावधान नहीं है।” 

उन्होंने ने कहा कि वकील लोकसेवक की श्रेणी में नहीं आता है। उसके ख़िलाफ़ बार एसोसिएशन ऐक्ट के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकते हैं। ऐसे बहुत से उदारहण हैं जब वकीलों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई है।

पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के सी कौशिक

नगर पालिका को एक भ्रष्टाचार युक्त प्रणाली बताते हुए के सी कौशिक ने विभाग के कर्मचारियों पर द्वेष की भावना से मुक़दमा दर्ज कराने का आरोप लगाया। उन्होंने अंदेशा जताया कि संभवतः नगर पालिका एडवोकेट से पीड़ित था इसलिए द्वेष की भावना से उनके ख़िलाफ़ आरोप लगाया गया है।

सितम्बर 2012 में एक ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी यही फ़ैसला सुनाया था। विजया बैंक द्वारा 22 लोगों को दिए गए लोन से हुए ₹1.27 करोड़ के घाटे के मामले में सीबाआई ने वकील पर सरकारी कर्मचारी के रूप में अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने और बैंक को धोखा देने के लिए एक बिल्डर सहित निजी व्यक्तियों के साथ साजिश रचने, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया गया था।

जस्टिस पी सदाशिवम और जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि किसी वकील पर बैंक को गलत सलाह देने के लिए तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जब तक कि यह साबित करने के लिए सबूत न हों कि वह बैंक को धोखा देने की साजिश का हिस्सा था। 

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ सीबीआई द्वारा डाली गई इस याचिका को ख़ारिज करते हुए SC ने एडवोकेट के ख़िलाफ़ सबूत मिलने की स्थिति में लापरवाही और प्रोफेशनल मिसकंडक्ट के लिए ज़िम्मेदार ठहराने को कहा था।

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