फ़्लोर टेस्ट के मामले में SC अपने पुराने रुख़ पर रही क़ायम, विशेषज्ञों ने की एंटी डिफ़ेक्शन को मज़बूती से लागू करने की वकालत

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सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है। बुधवार रात 9 बजे जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने फ़्लोर टेस्ट पर रोक लगाने के लिए डाली गई याचिका पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

फ़्लोर टेस्ट पर रोक लगाने या समय बढ़ाने की नियत से जब भी किसी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखाया है उसे निराशा हाथ लगी है। इस मामले में शीर्ष न्यायालय के अभी तक के फ़ैसलों से यह बिलकुल स्पष्ट है। 

2016 में उत्तराखंड में लगे राष्ट्रपति शासन के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने स्पष्ट कहा था कि अगर सरकार अल्पमत में हो तो फ्लोर टेस्ट ही अंतिम समाधान है। कोर्ट के इस निर्णय पर सुप्रीम के वकीलों ने भी सहमति जतायी है।

Sumit Verma, Advocate, Supreme Court of India

The Legal Observer से बातचीत के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट सुमीत वर्मा ने कहा कि,” कोर्ट कभी फ़्लोर टेस्ट पर रोक नहीं लगाता बल्कि प्रयास करता है कि ऐसी स्थिति में इस प्रक्रिया को जल्दी किया जा सके। ताकि हॉर्स ट्रेडिंग की किसी भी संभावना को टाला जा सके”।

एडवोकेट दिनेश कुमार गर्ग ने भी सुमित वर्मा की बातों से सहमति जतायी है। SC के फ़ैसले का स्वागत करते हुए दिनेश गर्ग ने कहा कि “अल्पमत की स्थिति में फ़्लोर टेस्ट ही एक मात्र विकल्प है और सुप्रीम कोर्ट ने बिलकुल सही निर्णय लिया है।”

हालाँकि दल बदल क़ानून (Anti Defection Law) को लेकर क़ानून विशेषज्ञों की राय थोड़ी जुदा रही। महाराष्ट्र के इस संकट के पहले उत्तराखंड, कर्नाटक, गोवा, राजस्थान सहित नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्यों के राजनीतिक दल इस समस्या को झेल चुके हैं।

कर्नाटक ने 3 बार 2006, 2010 और 2019 में यह दंश झेला है। 2019 में एंटी डिफ़ेक्शन क़ानून के तहत विधायकों को डिस्क्वालिफ़ाई भी किया गया था। गोवा में कांग्रेस के 14 में से 10 विधायकों ने कांग्रेस की टिकट पर जीतने के बाद भाजपा का दामन पकड़ लिया। वहीं अगर हाल में हुए दल बदल की बात करें तो, बिहार में एआईएमआईएम के 5 में से 4 विधायकों ने राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली है। हालाँकि महाराष्ट्र में शिवसेना का एकनाथ शिंदे गुट अभी किसी और पार्टी में शामिल नहीं हुआ है।

एडवोकेट दिनेश गर्ग बागी गुट के विधायकों पर कार्यवाही करने के पक्ष में हैं। उन्होंने ने कहा कि इस मामले पर उद्धव ठाकरे गुट के एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी को SC का ध्यान आकर्षित कराना चाहिए था। उन्होंने ने आगे कहा- बागी विधायकों पर एंटी डिफ़ेक्शन लॉ का इस्तेमाल पूरी मज़बूती से होना चाहिए।

एंटी डिफ़ेक्शन लॉ के मामले में एडवोकेट अनिल कर्णवाल ने भी दिनेश गर्ग की राय से सहमति जतायी है। उन्होंने ने Schedule 10 में बदलाव करने की बजाए उसी क़ानून को कड़ाई से लागू करने की वकालत की है।

Anil Karnwal, Advocate, Supreme Court of India

27 जून को बागी विधायकों द्वारा अर्जेंट लिस्टिंग के लिए डाली गयी याचिका को कोर्ट द्वारा स्वीकार करने पर अनिल कर्णवाल ने आपत्ति जतायी है। 13 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्जेंट लिस्टिंग को लेकर जारी किए गए सर्क्यलेशन के आधार पर उन्होंने सवाल खड़े किए हैं। 

अनिल कर्णवाल ने कहा, “ डेप्युटी स्पीकर के ख़िलाफ़ डाली गई याचिका सर्क्यलेशन में दिए गए कैटेगॉरी में कहीं फ़ॉल नहीं करती बावजूद इसके कोर्ट ने उसपर सुनवाई की। सर्क्यलेशन में अर्जेंट लिस्टिंग के लिए जिन 5 तरह के मामलों का ज़िक्र किया गया है उस हिसाब से कोर्ट को बागी गुट की याचिका पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी।”

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