जैन व हिंदू समाज के बाद जाट शासकों ने भी क़ुतुब मीनार पर जताया अपना अधिकार, साकेत कोर्ट में दाखिल की याचिका

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खुद को जाट शासक राजा नंद राम का वंशज बताने वाले एक व्यक्ति ने कुतुब मीनार की ज़मीन पर मालिकाना हक़ जताया है। दिल्ली की साकेत कोर्ट में याचिकाकर्ता कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने मेरठ से आगरा तक के क्षेत्र को अपनी पुश्तैनी सम्पत्ति बताकर अधिकार की माँग की है।

इस दावे के बाद साकेत कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) दिनेश कुमार ने कुतुब मीनार परिसर में हिंदू और जैन मंदिरों और देवताओं की पूजा बहाली की मांग वाली अपील पर फैसला 24 अगस्त तक के लिए टाल दिया है।

कोर्ट ने कुंवर महेंद्र ध्वज की याचिका पर सुनवाई होने तक पूजा बहाली की माँग वाली याचिका पर फ़ैसला देने से इनकार कर दिया। पुश्तैनी सम्पत्ति के दावे की जाँच हेतु कोर्ट ने केंद्र और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी किया है।

एडवोकेट एम.एल. शर्मा के माध्यम से दायर याचिका में कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने संयुक्त प्रांत आगरा के उत्तराधिकारी होने का दावा किया है। उन्होंने ने खुद को राजा नंद राम के वंशज राजा रोहिणी रमन ध्वज प्रसाद सिंह का उत्तराधिकारी बताया है। 

आवेदन के अनुसार राजा रोहिणी रमन ध्वज प्रसाद सिंह वर्ष 1950 में अपनी मृत्यु तक बेसवान अविभाज्य राज्य बेसवान एस्टेट हाथरस एस्टेट, मुसरान एस्टेट और वृंदाबन एस्टेट और गंगा, यमुना के बीच मेरठ से आगरा तक के क्षेत्रों के मालिक रहे। राजा रोहिणी रमन धवज की मृत्यु के बाद संपत्ति उनके कानूनी वारिसों यानी 4 बेटों और दो विधवाओं (आवेदक सहित) को 1950 के कानून के अनुसार विरासत में मिली थी।

आवेदक का दावा है कि 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने बेसवान अविभाज्य राज्य से किसी प्रकार का संधि, विलय या समझौता नहीं किया। इस आधार पर आज की तारीख में रियासत की स्थिति, स्वतंत्र और स्वामित्व है और जमुना और गंगा नदी के बीच चलने वाले संयुक्त प्रांत आगरा के सभी क्षेत्रों और आगरा से मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर और गुड़गांव पर उनका स्वामित्व है।

इससे पूर्व सीनियर एडवोकेट हरि शंकर जैन और रंजना अग्निहोत्री ने जैन तीर्थंकर ऋषभ देव और हिंदू भगवान विष्णु की ओर से एक याचिका दायर की थी। याचिका में एएसआई द्वारा प्रदर्शित एक संक्षिप्त इतिहास का हवाला दिया गया है, याचिका के अनुसार बताया गया है कि कैसे 27 मंदिरों को तोड़ा गया और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को खड़ा किया गया था।

कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में, एएसआई ने पूजा के पुनरुद्धार के लिए हिंदू पक्ष द्वारा दी गई दलीलों का विरोध किया। एएसआई ने कहा कि कुतुब मीनार 1914 से एक संरक्षित स्मारक है और तब से किसी भी समुदाय ने कुतुब मीनार या परिसर के अंदर कहीं भी पूजा नहीं की है। यह प्राचीन स्मारकों और पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम, 1958 के संरक्षण में आता है।

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