केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कोलैजियम जैसी व्यवस्था कायम करने की मांग वाली याचिका का किया विरोध।
संविधान पीठ से केंद्र की ओर से एएसजी बलबीर सिंह ने कहा कि मामला यह नहीं है कि किसी अक्षम व्यक्ति को नियुक्त किया गया है। वास्तव में चुनाव आयोग ने पूरी तरह से ठीक काम किया है। कोई विशिष्ट आरोप मौजूद नहीं है। ऐसा नहीं है कि अराजकता है। ऐसा नहीं है कि चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी के मामले में लोकतांत्रिक प्रक्रिया खतरे में है। आज एक प्रक्रिया है जो काम कर रही है। कुछ गलत हुआ, ऐसा कोई विशिष्ट उदाहरण नहीं पेश किया गया है। अब अगर हम कोई वैकल्पिक व्यवस्था लाते हैं तो क्या हम राष्ट्रपति या मंत्रिपरिषद को हटा देंगे।
केंद्र की ओर से एएसजी ने कहा कि ऐसी स्थिति में जहां कोई आरोप नहीं बनता। कोई समस्या नहीं दिखाई गई। कोई ऐसी बात सामने नहीं आई, फिर यह विश्लेषण क्यों?
एएसजी ने चुनाव आयोग की भूमिका दिखाने के लिए NJAC के फैसले को पढ़ा। एएसजी ने कहा कि यह फैसला स्पष्ट करता है कि अदालत ने कैसे नोट किया है कि सिस्टम में पहले से ही चेक और बैलेंस मौजूद हैं। संविधान सभा की बहस (CAD) और वाद-विवाद पर वापस चलते हैं। तमाम समस्याओं से पूरी तरह वाकिफ होने के कारण, सभा ने एक खास तरह का प्रावधान बनाने का फैसला किया था।
एएसजी ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की तुलना पर गौर करे अदालत और “परामर्श” शब्द की व्याख्या पर गौर करे। क्योंकि संविधान सभा ने प्रावधान का मसौदा तैयार करते समय यह सब देखा था।
संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि इस मामले में जजों का मामला एक मार्गदर्शक कारक हो सकता है।
जवाब में एएसजी ने कहा कि अब यह तुलना प्रासंगिक है, क्योंकि क्या हम केवल इसलिए विश्लेषण कर सकते हैं, क्योंकि कुछ अपारदर्शी है। यदि संस्था का कामकाज चुनौती के अधीन नहीं है तो केवल इसलिए कि यह अपारदर्शी है, इसे इस हद तक ले जाया जा सकता है।अब विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब संसद को ऐसा करना जरूरी नहीं लगा, तो क्या न्यायालय उस आकलन में जा सकता है?केंद्र की ओर से एएसजी ने कहा कि छुटपुट घटनाओं को अदालत के हस्तक्षेप का आधार नहीं बनाया जा सकता है। पद को सुरक्षित रखना हमारा प्रयास है। हम निर्धारित स्थान सेकुछ भी नहीं हटा सकते हैं। अनुच्छेद 324 में पारदर्शिता में रिक्तता क्या है? इसे कैसे भरें।
संविधान पीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि आप न्यायपालिका से तुलना कर रहे थे। अब उस पर नजर डालते हैं। पहले जब कार्यकारिणी नियुक्त कर रही थी तो हमने महापुरुषों को देखा है लेकिन प्रश्नचिन्ह भी थे। इसलिए कोर्ट ने एक नया तंत्र पेश किया। जस्टिस रस्तोगी ने आगे कहा कि अब अगर मौजूदा सिस्टम भी काम नहीं करता है तो आप इसे बदल सकते हैं। न्यायशास्त्र को देखें। एक ही बात। पहले शत प्रतिशत इंटरव्यू होता था। यह बदल गया तो मूल रूप से हम अनुभव से सीखते हैं।
जस्टिस रस्तोगी ने आगे कहा कि यदि अवसर की मांग है तो हम इसे बदल सकते हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि सिस्टम सही नहीं है। हम जो कह रहे हैं वह यह है कि एक पारदर्शी तंत्र होना चाहिए। लोगों को पता होना चाहिए कि आप किसके लिए काम करने जा रहे हैं।इसलिए हम पूछ रहे हैं कि हमें वह तंत्र दिखाएं, जिसे आप नियुक्ति में लागू करते हैं। आपने अभी 2 दिन पहले किसी को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया है। यह याद होना चाहिए। हमें दिखाओं। हमने आपको कल कहा था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणा पर एजी ने कहा तो क्या अदालत कह रही है कि मंत्रिपरिषद पर भरोसा नहीं है।जस्टिस रस्तोगी ने कहा नहीं, हम अपनी संतुष्टि के लिए कह रहे हैं कि आपने दो दिन पहले नियुक्ति में जो मैकेनिज्म अपनाया था, वह हमें दिखाइए।सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा क्या आप चुनाव आयुक्तों को नियुक्ति करने संबंधी नोटिफिकेशन को वापस ले सकते हैं। क्या आप दोबारा ऐसा कर सकते हैं और पुरानी स्थिति में वापस जा सकते हैं?
एएसजी बलबीर सिंह ने कहा जी हां।, बिल्कुल, कानूनन यह किया जा सकता है।एएसजी ने आगे कहा कि चरित्रवान व्यक्ति की तलाश करना एक बात हो सकती है। लेकिन इसका नियुक्ति के तरीके से कोई लेना-देना नहीं है।अभी हमारे पास एक तंत्र है, जो इतना बड़ा और ऐसा है कि यह किसी को पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण रखने और एक पक्ष लेने की अनुमति नहीं देता है। ऐसा कोई आरोप भी नहीं है।
जस्टिस केएम जोसेफ ने एएसजी से कहा कि चुनाव आयुक्त बनने वाले व्यक्ति को स्वतंत्र होना चाहिए। यहां हमें उस पर गौर करने की जरूरत है। हमें यह देखना है कि नियुक्ति प्रक्रिया कितनी स्वतंत्र है।
पंजाब कैडर के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए अपने टिप्पणी में कहा है कि हम चाहते हैं कि चुनाव आयुक्तों के नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी हो।
जस्टिस अजय रस्तोगी की टिप्पणी – हम यह नहीं कह रहे कि यह प्रकिया ग़लत है। लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। आप ( सरकार ) हमें वह मैकेनिज़्म बताइए जिससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाती है। दो ही दिन पहले ही आपने एक चुनाव आयुक्त को नियुक्त किया है।
एजी ने कहा हमने यह दिखाया है कि परंपरा का पालन कैसे किया जाता है और फिर हम प्रक्रिया भी दिखाते हैं। वरिष्ठता इत्यादि। यह चुनने और चुनने की प्रणाली बिल्कुल नहीं है। एक प्रक्रिया होती है।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि हम समझते हैं कि सीईसी की नियुक्ति ईसी में से की जाती है। आपने वरिष्ठता की बात की। लेकिन उसका कोई आधार नहीं है।
जवाब में एजी ने कहा कि फिर कोई सिस्टम उस मामले में काम नहीं कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप सिर्फ सिविल सेवकों तक ही क्यों सीमित हैं।
एजी ने कहा कि यह पूरी तरह से अलग बहस है। अगर कोई परंपरा है तो हम उसका पालन कैसे नहीं करते। क्या हम उम्मीदवारों के राष्ट्रीय पूल में ला सकते हैं। यह एक बड़ी बहस है।
एक अंतर्निर्मित गारंटी भी है। जब भी राष्ट्रपति सुझाव से संतुष्ट नहीं होता है तो वह कार्रवाई कर सकते हैं।
एएसजी ने कहा कि जब पीएम, राष्ट्रपति के साथ बैठे हैं, तो वह एक आधिकारिक कार्य कर रहे हैं। बौद्धिकता का प्रयोग होता है। किसी सबूत के अभाव में हम इन परम्पराओं के खिलाफ नहीं जा सकते हैं जो बहुत लंबे समय से काम कर रही हैं। अदालत सिर्फ इसलिए हस्तक्षेप नहीं कर सकती, क्योंकि कोई हर एक फाइल को यह नहीं दिखा सकता है कि नियुक्ति कैसे की जाती है। क्या भविष्य में प्रत्याशा या धमकी को दखल देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि यह परीक्षा नहीं है। आपको ऐसे उदाहरण दिखाने होंगे जिनमें कुछ गलत हुआ है। केवल संभावना, आशंका, चिंता हस्तक्षेप के लिए नहीं कहा जाता है। यह एक सुलझा हुआ कानून है।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि आप जिस तंत्र का पालन करते हैं, उसके बारे में बात करें। लेकिन आकलन क्या है।
जवाब में एएसजी ने कहा कि कन्वेंशन। इसे ही हम सम्मेलन कहते हैं जैसा कि हमने बताया है।
जस्टिस के एम जोसेफ– उदाहरण के लिए चुनाव आयुक्त को प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई कदम उठाना हो लेकिन आयुक्त कमज़ोर होगा तो वो कोई कदम ही नहीं उठा पायेगा। मैं यहाँ काल्पनिक तौर पर सिर्फ़ उदाहरण के लिए PM की बात कह रहा हूं।आयुक्त को स्वतंत्र,निष्पक्ष होना चाहिए।इसके लिए ज़रूरी है कि उनका चयन सिर्फ कैबिनेट के बजाए उससे कहीं ज़्यादा बॉडी की ओर से हो।राजनीतिक नेता बाते तो करते रहे है,पर ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ।