शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में आपके क्या अधिकार हैं और आप ऐसे में क्या कर सकते हैं ?

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देश भर में होने वाले रोड एक्सीडेंट के पीछे शराब पीकर गाड़ी चलाना भी एक बड़ा कारण है, मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 के तहत शराब पीकर ड्राइविंग करना दंडनीय अपराध है।  

क्या आपको पता है शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में आपके क्या अधिकार हैं और आप ऐसे में क्या कर सकते हैं ?

शराब पीना अपराध नहीं है लेकिन शराब पीकर गाड़ी चलाना दंडनीय अपराध है। कई दफा छोटे अपराध होने पर भी किसी व्यक्ति पर गलत तरीके से झूठा मुकदमा बनाकर उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपराध का आरोपी बना दिया जाता है जबकि उस व्यक्ति द्वारा ट्राफिक के किसी छोटे-मोटे नियम को तोड़ा जाता है। हालांकि जब भी किसी को शराब पीकर ड्राइविंग करने के आरोप में पकड़ा जाता है तो पुलिस उस व्यक्ति की सांसों की जांच की जाती है और यदि इस जांच में पॉजिटिव आता है तब ही उस व्यक्ति पर मुकदमा बनाया जा सकता है और व्यक्ति मोटर व्हीकल अधिनियम की धारा 188 के अंतर्गत आरोपी होता है।

आरोपी बनने पर क्या परिणाम होंगे – मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 मौके पर ही पुलिस कर्मियों को यह अधिकार नहीं देती है कि वह शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में किसी भी व्यक्ति का चालान काट दे, बल्कि पुलिस ऐसे व्यक्ति को पहले न्यायाधीश के समक्ष पेश करती है।

और न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत होने के बाद उसके सामने यह विकल्प रखा जाता है कि जो जुर्माना शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले में तय किया गया है उस जुर्माने को भर दे और अगर व्यक्ति यह कहता है कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है और वह किसी भी प्रकार से शराब पीकर गाड़ी नहीं चला रहा था, हालांकि  उसने केवल रेड सिग्नल को तोड़ा है तब प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट मामले में विचारण की कार्रवाई करता है।

विचारण का अर्थ यह होता है कि अब व्यक्ति पर पूरा मुकदमा चलाया जाएगा और अपराध सिद्ध होने पर ही उसको सजा दी जाएगी। अगर व्यक्ति अपराध स्वीकार कर लेता है, तब उससे जुर्माना भरवाया जाता है। आपको बात दें धारा 185 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति के द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने पर ₹10000 का जुर्माना है। लेकिन यदि वह निर्दोष है तब उसके पास यह अधिकार है कि वह मामले को न्यायालय में चुनौती दे और अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों को स्वीकार नहीं करें। निर्दोष होने पर अपराध स्वीकार नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे छवि पर भी गलत प्रभाव पड़ता है और उसके संबंध में यह मामला दर्ज हो जाता है कि उसने भूतकाल में किसी प्रकार का कोई अपराध किया है। यह भी अपराध की श्रेणी में ही आता है इसलिए इसे रिकॉर्ड पर रखा जाता है। विचारण की कार्रवाई तारीख दर तारीख चलती है। इस मामले में पुलिस अधिकारियों के बयान होते हैं, मशीन द्वारा बताई गई जांच पर विचार होता है और कोई आइविट्निस है तो उसके बयान लिए जाते हैं फिर न्यायालय द्वारा मामले में अपना निर्णय दिया जाता है। विचारण की कार्रवाई के लिए आरोपी को अपनी जमानत लेना होती है और एक जमानतदार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जो उसकी ओर से आरोपी की जमानत लेता है। वहीं कभी कभी देखने में आता है कि निर्दोष लोग भी ऐसे आरोपों में अपराध स्वीकार कर लेते हैं और जुर्माने की राशि भर देते हैं जबकि यह तरीका ठीक नहीं है। निर्दोष व्यक्ति को विचारण की मांग करना चाहिए।  हालांकि धारा 188 के अंतर्गत कारावास की सजा का प्रावधान तो है लेकिन यह इतना बड़ा अपराध नहीं है कि इस पर कारावास दिया जाए। अगर आरोपी पर अपराध साबित हो भी जाता है तब भी न्यायालय उसे जहां तक हो सके जुर्माना करने का प्रयास ही करता है। इसलिए विचारण की कार्रवाई से घबराना नहीं चाहिए और निर्दोष होने पर अपने मामले को न्यायालय के सामने रखना चाहिए।

Prakher Pandey
Prakher Pandey

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