एमटीपी कानून है क्या, यह कब से लागू है, इसमें अब तक क्या प्रावधान थे और अब तक क्या बदलाव हुए हैं?

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सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में बड़ा फैसला देते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में एक बाद संशोधन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाएं चाहे विवाहित हों या अविवाहित, महिलायें सुरक्षित गर्भपात कराने की कानूनन हकदार हैं। MTP एक्ट में संशोधन करते हुए कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा महिलाओं की तरह कुंवारी महिलाओं को भी गर्भपात कराने का हक है। सुप्रीम कोर्ट ने एमटीपी कानून और इससे संबंधित नियमों के बदलाव को लेकर यह फैसला सुनाया है।

क्या है मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट?

दुनिया भर में केवल 41 देशों में महिलाओं के लिए अबॉर्शन को संवैधानिक अधिकार दिया गया है। जिसमे से एक है भारत। पहली बार 1971 में गर्भपात कानून पास किया गया था,  जिसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी यानी एमटीपी अधिनियम 1971 नाम दिया गया था। जैसा कि इस एक्ट के नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट गर्भपात से जुड़ा एक कानून है। यह प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन यानी प्रेग्नेंसी को खत्म करने की इजाजत देता है। हालांकि इसके लिए कुछ चिकित्सकीय टर्म और कानूनी शर्तें हैं।

हमारे देश में गर्भपात को कानूनी मान्यता है, लेकिन हर परिस्थिति में इसकी छूट नहीं है। देश में जो ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’ है, वह वर्ष 1971 से लागू है। जिसमे वर्ष 2021 में संशोधन हुआ था। पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन हुआ और यह समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई। हालांकि कुछ विशेष परिस्थिति में 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाजत दी जाती है।

देश में गर्भपात की अनुमति को तीन टाइम-कैटेगरी में रखा गया है –

पहले हफ्ते से लेकर से 20 हफ्ते तक – अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है तो वह गर्भधारण के 0 से 20 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है। अगर कांट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो गया हो और महिला न चाहते हुए भी गर्भवती हो जाए तो भी वो अबॉर्शन करवा सकती है। ऐसी स्थिति में गर्भपात के लिए डॉक्टर का रजिस्टर्ड होना जरूरी है।

गर्भधारण के 20 से 24 हफ्ते तक – अगर मां या बच्चे की जान को खतरा हो, जच्चा-बच्चा के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह का खतरा हो, तो इस स्थिति में गर्भधारण के 20 से 24 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। ऐसे मामलों में दो डॉक्टर्स का होना जरूरी है।

गर्भधारण के 24 हफ्ते बाद – किसी विशेष परिस्थिति में ही अनुमति मिलती है। अगर महिला यौन उत्पीड़न/दुष्कर्म का शिकार हुई हो और उस कारण गर्भ ठहर गया हो तो 24 हफ्ते बाद भी गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। अगर महिला नि:शक्त है तो भी गर्भधारण के 24 हफ्ते बाद गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है।अगर बच्चे के जिंदा बच पाने की संभावना बहुत कम हो या मां की जान को खतरा हो तो भी अनुमति दी जा सकती है। साथ ही एक शर्त गर्भावस्था के दौरान महिला के मैरिटल स्टेटस में बदलाव भी है। जैसे प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का तलाक हो जाए या फिर वह विधवा हो जाए तो भी उसे गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। ऐसी परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति देने का फैसला मेडिकल बोर्ड लेता है।


Prakher Pandey
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