कलकत्ता हाईकोर्ट का अहम् फैसला, बांझपन तलाक आधार नहीं

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कोलकाता: बांझपन को तलाक का आधार नहीं बनाया जा सकता है. बांझपन के कारण एक महिला मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही होती हैं ऐसे में उसे छोड़ना ‘मानसिक क्रूरता’ है. कलकत्ता हाईकोर्ट में तलाक के एक मामले को लेकर जज ने ऐसा ही फैसला सुनाया हैं. 2017 में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी से तलाक लेने का मुकदमा दायर किया था. उस मुकद्दमें में तलाक का कारण ये बताया गया कि उसकी पत्नी अब मां नहीं बन सकती हैं. इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि बांझपन तलाक का कोई आधार नहीं है. इसके साथ ही बांझपन के कारण पत्नी को छोड़ना ‘मानसिक क्रूरता’ है।

जून 2017 में पति ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक का मामला दायर किया था. वहीं एक महीने बाद इस मामले में पत्नी ने पति खिलाफ आपराधिक आरोप दायर किए.कोलकाता की बेलियाघाटा पुलिस ने 6 दिसंबर 2017 को पति के खिलाफ आपराधिक विश्वासघात, शारीरिक और मानसिक क्रूरता और स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए आईपीसी की धाराओं के मामला दायर किया था. तब से मामले की सुनवाई चल रही थी.

बांझपन के कारण पति पत्नी से तलाक लेना चाहता था. इस मामले पर जस्टिस शम्पा दत्त पॉल ने पति की तलाक याचिका के समय पर आपत्ति जताई. जस्टिस पॉल ने कहा, ‘किसी महिला के लिए मेनोपॉज से बांझपन होना पहले ही मानसिक तनाव का कारण है. ऐसी महिला अगर आपने मां बनने के सपने को खो दे. इससे ज्यादा दुखद कुछ नहीं हो सकता. ऐसे समय में पति का यह कर्तव्य है कि वह एक-दूसरे की ताकत बने. माता-पिता बनने के कई विकल्प हैं. एक जीवनसाथी को इन परिस्थितियों में समझदार होना चाहिए क्योंकि यह दूसरा ही है जो उसकी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक शक्ति को पुनः प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

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Bhawna
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