” मत की अभिव्यक्ति अदालत की अवमानना नहीं “-प्रशांत भूषण का सुप्रीम कोर्ट को जवाब

कार्यकर्ता व वकील भूषण ने वकील कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर 142 पृष्ठों वाले जवाबी हलफनामे में उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों, लोकतंत्र में असंतोष को रोकने और अदालत की अवमानना पर पूर्व व मौजूदा न्यायाधीशों के भाषणों का भी जिक्र किया।

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नई दिल्ली. |  सुप्रीम कोर्ट में अदालत की अवमानना का सामना कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) की आलोचना करने का मतलब सुप्रीम कोर्ट की निंदा या उसकी गरिमा को कम करना नहीं है। अवमानना मामले में जारी नोटिस के जवाब में रविवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में भूषण ने कहा है कि सीजेआइ को सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को सीजेआइ मान लेना एक संस्था के रूप में सर्वोच्च अदालत को कमजोर करना है।

प्रशांत भूषण ने पिछले महीने सीजेआइ बीएस बोबडे की मोटरबाइक पर बैठे तस्वीर प्रकाशित होने पर ट्वीट किया था। उन्होंने कहा था कि कोरोना महामारी में शारीरिक दूरी को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामान्य कामकाज को बंद कर दिया गया है और सीजेआइ बिना मास्क लगाए लोगों के बीच मौजूद हैं। जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनके इस ट्वीट को अदालत की अवमानना मानते हुए उन्हें नोटिस जारी किया था।

भूषण ने हलफनामा में कहा है कि किसी एक प्रधान न्यायाधीश या उसके बाद के प्रधान न्यायाधीशों के कामकाज की आलोचना करने का मतलब सुप्रीम कोर्ट की छवि को खराब करना नहीं है। उन्होंने कहा कि मोटरसाइकिल पर बैठे सीजेआइ के बारे में उनका ट्वीट, पिछले तीन महीने से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट में सामान्य कामकाज नहीं होने पर उनकी पीड़ा को दर्शाता है।

हलफनामे में आगे कहा गया है कि भारत के पिछले चार प्रधान न्यायाधीशों के बारे में भूषण ने अपने ट्वीट में जो भी कुछ भी कहा है, वह उनके अपने विचार हैं। यह भी भूषण की अपनी राय है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को नष्ट करने की अनुमति दी। इस तरह के विचार को ‘मुखर’, ‘अस्वीकार्य’ या ‘अरुचिकर’ तो माना जा सकता है, लेकिन यह अदालत की अवमानना के दायरे में नहीं आ सकता। इसमें आगे कहा गया है, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आलोचना के अधिकार में न्यायपालिका की निष्पक्ष और मजबूत आलोचना शामिल है। इसे किसी भी तरह से अदालत की अवमानना या अदालत की गरिमा को कम करने के दायरे में नहीं रखा जा सकता है।’ 

वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस के जवाब में सोमवार को कहा कि मत की अभिव्यक्ति से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती भले ही वह कुछ लोगों के लिए अरुचिकर या अस्वीकार्य हो। अदालत ने 22 जुलाई को भूषण को नोटिस जारी किया था। न्यायालय ने न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो कथित अपमानजनक ट्वीट को लेकर शुरू की गई आपराधिक अवमानना कार्यवाही पर पांच अगस्त को सुनवाई का नोटिस जारी किया था।

न्यायालय ने उनके बयानों को प्रथम दृष्टया न्याय प्रशासन की छवि खराब करने वाला बताया था। कार्यकर्ता व वकील भूषण ने वकील कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर 142 पृष्ठों वाले जवाबी हलफनामे में उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों, लोकतंत्र में असंतोष को रोकने और अदालत की अवमानना पर पूर्व व मौजूदा न्यायाधीशों के भाषणों का भी जिक्र किया। इसके अलावा उन्होंने कुछ मामलों में न्यायिक कार्रवाई पर अपने विचारों का भी उल्लेख किया है।

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Web Desk
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