Saturday, June 21, 2025

Kanwar Lal Meena को Court में किया गया Arrest, 2011 में ड्यूटी पर तैनात SDM को धमकाने का था मामला

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Kanwar Lal Meena

राजस्थान के बस्सी से भाजपा विधायक Kanwar Lal Meena ने मंगलवार को जयपुर की एक कोर्ट में आत्मसमर्पण (सरेंडर) कर दिया। यह सरेंडर 2011 में एक एसडीएम (SDM) पर पिस्तौल तानने और सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद हुआ। कोर्ट ने इस मामले में उन्हें दो साल की सजा और जुर्माना सुनाया था।

कोर्ट में सरेंडर, समर्थकों पर भड़के विधायक

Kanwar Lal Meena के सरेंडर के दौरान उनके साथ बड़ी संख्या में समर्थक पहुंचे, जिन्होंने कोर्ट परिसर में नारेबाज़ी शुरू कर दी। इस पर विधायक मीणा ने कड़ा ऐतराज जताते हुए उन्हें फटकारा और कहा,

“यह कोर्ट है, कोई जलसा नहीं। कानून का सम्मान करो।”

उनकी नाराज़गी का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया है, जिसमें वे समर्थकों से शांत रहने की अपील करते दिख रहे हैं।

क्या था मामला?

यह मामला वर्ष 2011 का है, जब Kanwar Lal Meena जयपुर के पास स्थित बांसा गांव में एक भूमि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान पहुंचे थे। वहां तैनात तत्कालीन एसडीएम भंवरलाल गुर्जर के अनुसार, विधायक मीणा ने पहले सरकारी कार्य में बाधा डाली और फिर लाइसेंसी रिवॉल्वर निकालकर जान से मारने की धमकी दी।

इस गंभीर आरोप के बाद भांकरोटा थाने में उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353, 341, 186, 506 और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

ट्रायल के बाद दोष सिद्ध

करीब 13 साल तक चली अदालती सुनवाई के बाद अदालत ने विधायक मीणा को सरकारी कार्य में बाधा डालने और जान से मारने की धमकी देने का दोषी करार दिया। कोर्ट ने उन्हें दो साल की सजा और आर्थिक दंड सुनाया था। हालांकि, विधायक Kanwar Lal Meena की ओर से सजा पर स्थगन (Stay on sentence) के लिए याचिका भी दाखिल की गई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

विधायक का पक्ष

विधायक Kanwar Lal Meena ने इस मामले को राजनीतिक साजिश करार देते हुए कहा,

“मुझे सच्चाई पर भरोसा है। जो हुआ वह एक गलतफहमी थी, मैं अदालत का सम्मान करता हूं और कानून की प्रक्रिया में पूरा सहयोग करूंगा।”

क्या उन्हें विधानसभा सदस्यता से हाथ धोना पड़ेगा?

चूंकि विधायक को दो साल की सजा हुई है, इसलिए यह सवाल भी उठता है कि क्या उन्हें लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत विधानसभा सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है?

हालांकि, यदि विधायक की अपील ऊपरी अदालत में स्वीकार की जाती है और सजा पर रोक लग जाती है, तो उनकी सदस्यता फिलहाल बनी रह सकती है। इस संबंध में पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में कहा है कि अपीलीय अदालत की स्थगन आदेश के बिना सदस्यता स्वतः समाप्त हो सकती है।

राजनीतिक और कानूनी विश्लेषण

यह मामला दिखाता है कि जन प्रतिनिधियों को भी कानून के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। साथ ही, यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या राजनेताओं के खिलाफ चलने वाले आपराधिक मामलों में धीमी न्यायिक प्रक्रिया उन्हें लाभ पहुंचाती है?

राजस्थान हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महेश शर्मा कहते हैं,

“सरकारी कार्य में बाधा और धमकी जैसे आरोप गंभीर हैं। कोर्ट का यह फैसला एक नज़ीर बन सकता है, अगर उच्च अदालत में यह बरकरार रहता है।”


कंवरलाल के खिलाफ वर्ष 2005 में मनोहर थाने में मामला दर्ज हुआ । ट्रायल कोर्ट ने अप्रेल 2018 में साक्ष्य के अभाव में मीणा को बरी किया

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