Supreme Court Collegium ने सोमवार को हुई अपनी अहम बैठक में देशभर के उच्च न्यायालयों में 21 न्यायाधीशों के तबादले और प्रत्यावर्तन (repatriation) की सिफारिश की है। यह निर्णय न्यायपालिका के भीतर प्रशासनिक दक्षता, विविधता और संस्थागत संतुलन सुनिश्चित करने की दृष्टि से लिया गया है।
Collegium की इस बैठक की अध्यक्षता भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने की, जो हाल ही में पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के स्थान पर पदभार ग्रहण कर चुके हैं।
किस जज का कहां हुआ ट्रांसफर?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक सभी नामों को औपचारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार जिन 21 जजों के स्थानांतरण की सिफारिश की गई है, उनमें कुछ को पूर्व सेवा वाले मूल हाई कोर्ट में प्रत्यावर्तित (वापस) किया जा रहा है, जबकि अन्य को कार्यभार और न्यायिक संतुलन के आधार पर दूसरे उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित किया जा रहा है।
जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर इन ट्रांसफरों की विस्तृत सूची और कारण सार्वजनिक किए जाने की संभावना है।
ट्रांसफर और प्रत्यावर्तन: प्रक्रिया और कारण
भारतीय संविधान के तहत, हाई कोर्ट के न्यायाधीशों का ट्रांसफर अनुच्छेद 222 के अंतर्गत किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट Collegium, जो मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम जजों का समूह होता है, इस प्रक्रिया का संचालन करता है। केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेने की शक्ति रखती है।
प्रत्यावर्तन का तात्पर्य उस न्यायाधीश को उसके मूल उच्च न्यायालय में वापस भेजने से है, जहाँ से वह पहले स्थानांतरित होकर दूसरे हाई कोर्ट में गया था। ऐसा कदम आमतौर पर तब उठाया जाता है जब:
- न्यायाधीश स्वयं वापसी की इच्छा जताते हैं।
- प्रशासनिक आवश्यकता उत्पन्न होती है।
- मूल कोर्ट में न्यायिक कुशलता की तत्काल आवश्यकता होती है।
Collegium की पारदर्शिता और आलोचनाएं
Collegium प्रणाली वर्षों से पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका को लेकर विवादों में रही है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हालिया वर्षों में अपने फैसलों को वेबसाइट पर प्रकाशित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, फिर भी ट्रांसफर के पीछे के ठोस कारण सार्वजनिक नहीं किए जाते।
न्यायमूर्ति एम. एन. वेंकटचलैया आयोग सहित कई न्यायिक आयोगों ने भी Collegium प्रणाली की समीक्षा की सिफारिश की थी, लेकिन अब तक इस प्रणाली में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं किया गया है।
बार काउंसिल और वकील समुदाय की प्रतिक्रिया
कई वरिष्ठ वकीलों और बार काउंसिल के सदस्यों ने इस कदम का स्वागत किया है। उनके अनुसार, “जजों का रोटेशन जरूरी है ताकि वे विभिन्न न्यायिक परिप्रेक्ष्य और प्रशासनिक चुनौतियों का अनुभव कर सकें।”
हालांकि, कुछ वकीलों का यह भी मानना है कि लगातार ट्रांसफर से स्थायित्व और परिवारिक परिस्थितियों पर असर पड़ता है, जिससे न्यायिक निर्णयों में निरंतरता में बाधा आती है।
उच्च न्यायपालिका में महिला जजों की भागीदारी पर असर?
सूत्रों के अनुसार, ट्रांसफर की गई सूची में कुछ महिला जजों के नाम भी शामिल हैं। यदि यह सत्य है, तो यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस कदम से महिला न्यायाधीशों की भागीदारी और प्रोत्साहन पर कोई सकारात्मक या नकारात्मक असर पड़ता है।
न्यायिक दक्षता के लिए अनिवार्य
भारत में उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या लाखों में है। ऐसे में कार्यभार का संतुलन बनाए रखने के लिए ट्रांसफर एक जरूरी प्रशासनिक उपाय बन गया है। उदाहरण के लिए, यदि किसी हाई कोर्ट में जजों की संख्या आवश्यकता से अधिक है और किसी अन्य कोर्ट में कमी, तो ट्रांसफर के माध्यम से यह संतुलन बनाया जाता है।
निष्कर्ष: आगे क्या?
Collegium की सिफारिशें अब केंद्र सरकार के विचाराधीन हैं। जब केंद्र की स्वीकृति प्राप्त हो जाएगी, तब संबंधित न्यायाधीशों को उनके नए कोर्ट में कार्यभार ग्रहण करने के आदेश जारी होंगे।
यह व्यापक फेरबदल आने वाले महीनों में भारत की न्यायिक व्यवस्था को एक नया स्वरूप दे सकता है—जिसमें दक्षता, न्यायिक विविधता और निष्पक्षता को प्राथमिकता दी जाएगी।
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