
Delhi High Court: देश की न्यायपालिका लंबे समय से मुकदमों की भीड़ और न्यायिक देरी से जूझ रही है। इसी पृष्ठभूमि में अब हाई कोर्ट्स ने लंबित मामलों की संख्या घटाने के लिए एक तीन चरणों वाली व्यापक और एकीकृत कार्य योजना तैयार की है। इसका उद्देश्य न केवल अदालतों पर भार कम करना है, बल्कि न्याय के त्वरित और प्रभावी वितरण को भी सुनिश्चित करना है।
यह योजना मुख्य न्यायाधीशों के नेतृत्व में लागू की जा रही है और इसमें न्यायिक अधिकारियों, वकीलों और राज्य सरकारों की भागीदारी भी अपेक्षित है।
Delhi High Court :पहला चरण: डेटा विश्लेषण और प्राथमिकता निर्धारण
- लंबित मामलों का विश्लेषण किया जाएगा।
- 10 वर्ष से अधिक पुराने मामलों को प्राथमिकता दी जाएगी।
- जिला स्तर पर विशेष समीक्षा कमेटी गठित की जाएगी।
यह चरण यह तय करेगा कि किन मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाना है, जिससे पुराने मामलों की संख्या में शीघ्र कमी लाई जा सके।
दूसरा चरण: न्यायिक संसाधनों का पुनर्गठन
- Delhi High Court विशेष बेंचों का गठन किया जाएगा जो केवल पुराने मामलों पर ध्यान केंद्रित करेंगी।
- तकनीक आधारित टूल्स का उपयोग करके मामलों की ट्रैकिंग और निगरानी की जाएगी।
- न्यायिक अधिकारियों को लक्ष्य आधारित समयसीमा दी जाएगी।
यह चरण न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक कुशल और जवाबदेह बनाने की दिशा में कार्य करेगा।
तीसरा चरण: वैकल्पिक विवाद निपटान (ADR) का प्रोत्साहन
- Delhi High Court लोक अदालतें, मध्यस्थता, और सुलह केंद्रों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाएगा।
- 5 लाख रुपये तक के सिविल विवादों को प्राथमिकता से ADR के जरिए सुलझाने का प्रयास किया जाएगा।
- पक्षकारों को कोर्ट के बाहर समाधान के लिए प्रेरित किया जाएगा।
ADR के माध्यम से मामलों के शीघ्र निपटारे की संभावना बढ़ती है, जिससे न्यायपालिका पर भार कम होता है।
मुख्य न्यायधीशों और नीति निर्माताओं की प्रतिक्रिया
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजिव खन्ना ने हाल ही में कहा था, “न्याय केवल अंतिम निर्णय नहीं है, बल्कि समय पर दिया गया निर्णय ही सच्चा न्याय है।” इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए यह योजना तैयार की गई है।
कानून मंत्रालय के अनुसार, देश में वर्तमान में 4.5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से लगभग 70% मामले निचली अदालतों में हैं।
तकनीक और ई-कोर्ट्स का सहयोग
इस योजना को ई-कोर्ट परियोजना से जोड़ा जा रहा है, जिसमें वर्चुअल सुनवाई, केस ट्रैकिंग सिस्टम और डिजिटल दस्तावेज़ प्रबंधन जैसे उपायों से प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाया जाएगा।
नीति सुधार की दिशा में एक सार्थक कदम
यह कार्य योजना केवल न्यायिक सुधार का प्रयास नहीं है, बल्कि नागरिकों के न्याय के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक सार्थक कदम भी है।
The Legal Observer के राष्ट्रीय समाचार सेक्शन के अनुसार, यह पहल आने वाले समय में न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही को भी मजबूत करेगी।
निष्कर्ष
Delhi High Court तीन चरणों में लागू की जा रही यह कार्य योजना न्यायिक प्रणाली की दशकों पुरानी चुनौती—लंबित मामलों—से निपटने की दिशा में एक महत्वाकांक्षी और व्यावहारिक पहल है। यदि यह प्रभावी ढंग से लागू होती है, तो यह भारतीय न्यायपालिका के प्रति जनता के विश्वास को और मज़बूत करेगी।
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