IAF woman officer:सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला विंग कमांडर को वायुसेना में सेवा से हटाए जाने के फैसले पर रोक लगाते हुए उन्हें ड्यूटी पर बनाए रखने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि ऐसे अफसर राष्ट्र की धरोहर हैं, और उन्हें सेवा से बाहर करना ‘सर्वोच्च बलिदान’ देने वाले अधिकारियों के साथ अन्याय होगा।
यह फैसला ऐसे समय आया है जब सशस्त्र बलों में महिला अफसरों की भूमिका को लेकर बहस तेज है और लैंगिक समानता की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
क्या था मामला?
IAF woman officer ने अपनी याचिका में बताया कि वे 2007 में वायुसेना में शामिल हुई थीं और ऑपरेशन सिंदूर (J&K) तथा बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसे संवेदनशील अभियानों में हिस्सा ले चुकी हैं। उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई कि बिना किसी स्पष्ट कारण के उन्हें सेवा से हटाया जाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
“इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी वायुसेना सर्वश्रेष्ठ है और ये IAF woman officerसराहनीय हैं। इन्हें बाहर करने का कोई औचित्य नहीं बनता।”
कोर्ट ने कहा कि जब अफसरों ने कठिन और जोखिमभरे अभियानों में हिस्सा लिया हो, तो उनके समर्पण और सेवा की सराहना होनी चाहिए, न कि अनदेखी।
वायुसेना का पक्ष
IAF woman officer:भारतीय वायुसेना ने कहा कि यह एक ‘रूटीन सर्विस रिव्यू’ प्रक्रिया का हिस्सा था, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘समान अवसर और योग्यता’ को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम
IAF woman officer: यह फैसला महिला अफसरों को स्थायी कमीशन और युद्ध अभियानों में भागीदारी को लेकर कोर्ट द्वारा दिए गए पूर्व निर्णयों की कड़ी में एक और अहम निर्णय है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था।
ऑपरेशन सिंदूर और बालाकोट की पृष्ठभूमि
- ऑपरेशन सिंदूर: जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों के तहत एक कोड नाम है, जिसमें वायुसेना ने बड़े स्तर पर भूमिका निभाई थी।
- ऑपरेशन बालाकोट: 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर वायुसेना की एयरस्ट्राइक की गई थी। इसमें शामिल पायलटों की भूमिका को ऐतिहासिक माना गया।
यह अफसर दोनों ही अभियानों में शामिल रही थीं, और उन्होंने अपनी याचिका में इसका ज़िक्र करते हुए कहा कि ऐसे अभियानों में भाग लेने के बाद उन्हें सेवा से हटाना अनुचित है।
महिला अधिकारियों की बढ़ती भूमिका
भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। हाल ही में कई महिलाओं को युद्धक भूमिकाओं में नियुक्त किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह संदेश जाता है कि सेवा में योग्यता, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा ही सर्वोपरि है — लिंग नहीं।
विशेषज्ञों की राय
पूर्व न्यायमूर्ति मदन लोकुर ने कहा,
“यह फैसला आने वाले समय में महिला अधिकारियों के लिए मिसाल बनेगा।”
रक्षा विश्लेषक अजय शुक्ला के अनुसार,
“यह सुप्रीम कोर्ट का साहसिक निर्णय है, जो वायुसेना की पेशेवर संस्कृति को मजबूती देता है।”
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ IAF woman officer को व्यक्तिगत राहत देता है, बल्कि यह सैन्य बलों में निष्पक्षता और लैंगिक समानता की ओर बढ़ता कदम भी है। यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा। देश का भविष्य को आगे बढ़ाये. ताकि महिलाओं को आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलें. रिपोर्ट The Legal Observer
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