PIL जनहित याचिका (Public Interest Litigation) एक ऐसा अधिकार है जो किसी भी नागरिक को यह शक्ति देता है कि वह समाज या जनता से जुड़े किसी मुद्दे पर अदालत में याचिका दायर कर सके। इसका उद्देश्य है कि न्याय केवल संपन्न और शिक्षित लोगों तक सीमित न रहे, बल्कि समाज के हर वर्ग तक पहुँचे।
यह धारणा भारत में 1979 में आई जब जस्टिस पी. एन. भगवती और जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर ने इसे न्यायपालिका का हिस्सा बनाया।
कौन दायर कर सकता है?
- कोई भी भारतीय नागरिक PIL दायर कर सकता है।
- याचिकाकर्ता को उस मामले में व्यक्तिगत रूप से प्रभावित होना जरूरी नहीं है।
- एनजीओ, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील या कोई भी जागरूक नागरिक यह याचिका दायर कर सकता है।
कब नहीं दायर किया जा सकता:
- अगर मामला सिर्फ निजी स्वार्थ, राजनीतिक उद्देश्य या प्रचार पाने के लिए हो।
- कोर्ट ऐसे मामलों में जुर्माना भी लगा सकती है।
किन मुद्दों पर PIL दायर की जा सकती है?
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
- पर्यावरण प्रदूषण
- मानवाधिकार हनन
- गरीबों के अधिकार
- भ्रष्टाचार या सरकारी धन का दुरुपयोग
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (illegal detention)
- बाल श्रम, बंधुआ मजदूरी, महिला उत्पीड़न
PIL कहाँ दायर की जा सकती है?
- सुप्रीम कोर्ट में – संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत
- हाई कोर्ट में – संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत
- न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत – विशेष परिस्थिति में
दाखिल करने की प्रक्रिया
1. मुद्दे की पहचान करें
- यह देख लें कि मामला वास्तव में जनहित का है।
- समाचार रिपोर्ट, फोटो, दस्तावेज़ आदि सबूत इकट्ठा करें।
2. कानूनी शोध करें
- समझें कि किस कानून या अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
- पहले के केसों का अध्ययन करें (जैसे – विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, एमसी मेहता बनाम भारत संघ)।
3. याचिका ड्राफ्ट करें
PIL याचिका में निम्नलिखित शामिल होना चाहिए:
- शीर्षक: “भारत के सुप्रीम कोर्ट में” या “________ हाई कोर्ट में”
- याचिकाकर्ता बनाम प्रतिवादी
- मामले के तथ्य
- याचिका के आधार (कानूनी कारण)
- माँगी गई राहत (reliefs)
- संलग्न साक्ष्य
- सत्यापन पत्र
4. याचिका दायर करें
- सुप्रीम कोर्ट में “PIL सेल” में दाखिल करें।
- हाई कोर्ट में रजिस्ट्री में दाखिल करें।
- जरूरी हो तो तत्काल सुनवाई का अनुरोध करें।
5. कोर्ट शुल्क
- सुप्रीम कोर्ट में PIL के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
- हाई कोर्ट में सामान्यत: ₹100 से कम का शुल्क लगता है।
6. कोर्ट की स्वीकृति
- कोर्ट याचिका की समीक्षा करेगा।
- उपयुक्त लगे तो नोटिस जारी करेगा।
- किसी-किसी मामले में अमीकस क्यूरी (amicus curiae) नियुक्त किया जाता है।
7. सुनवाई और निर्णय
- कई बार कई चरणों में सुनवाई होती है।
- कोर्ट जरूरी आदेश, दिशा-निर्देश या नीति सुधार लागू कर सकती है।
PIL से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
- PIL सिर्फ सार्वजनिक हित में होनी चाहिए।
- गलत उद्देश्य से दायर याचिकाओं पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
- उत्तरांचल बनाम बलवंत चौफाल (2010) केस में कोर्ट ने PIL दायर करने की सीमाएं तय की थीं।
PIL ड्राफ्ट करने के सुझाव
- भाषा सरल और सीधी रखें।
- प्रमाणिकता के लिए दस्तावेज़ ज़रूर संलग्न करें।
- भावना से नहीं, तर्क और तथ्य से याचिका प्रस्तुत करें।
- राहत (reliefs) स्पष्ट रूप से मांगे – जैसे “सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नियुक्त किए जाएं”।
भारत में कुछ ऐतिहासिक PIL
- MC Mehta v. Union of India – गंगा नदी प्रदूषण
- Vishaka v. State of Rajasthan – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ दिशा-निर्देश
- Hussainara Khatoon v. State of Bihar – विचाराधीन कैदियों के अधिकार
- PUCL v. Union of India – खाद्य सुरक्षा और जन वितरण प्रणाली
निष्कर्ष
जनहित याचिका आम जनता के हाथ में एक लोकतांत्रिक हथियार है। इससे न केवल पीड़ितों को न्याय मिलता है बल्कि सरकार और संस्थानों को जिम्मेदार भी बनाया जा सकता है। लेकिन इसका दुरुपयोग न हो, यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
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