Justice vs Morality:सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील फैसले में पॉक्सो कानून के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा को माफ कर दिया है। दोषी ने पीड़िता से शादी कर ली थी, जिसे अदालत ने “एक आंख खोलने वाली स्थिति” करार दिया और अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकारों का उपयोग किया।
इस फैसले ने देश भर में कानूनी समुदाय और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय “असाधारण परिस्थितियों” को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जहां दोनों पक्ष विवाह के संबंध में सहमति से जीवन यापन कर रहे हैं।
“यह मामला हमारी आंखें खोलने वाला है,” — सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी।
अनुच्छेद 142 का उपयोग
Justice vs Morality: अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को “पूर्ण न्याय” देने के लिए किसी भी आदेश या निर्णय पारित करने का अधिकार देता है। हालांकि इस अनुच्छेद का प्रयोग कई ऐतिहासिक मामलों में किया गया है, लेकिन बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में इसका प्रयोग बहस का विषय बन गया है।
POCSO कानून, जो बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए बनाया गया है, उसमें सख्त सजा का प्रावधान है। ऐसे में, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह कदम कई लोगों को कानून की मूल भावना से विचलन की तरह प्रतीत हुआ है।
विवाद और प्रतिक्रिया
Justice vs Morality:इस फैसले को लेकर बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कई कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि शादी को बलात्कार जैसे अपराध का समाधान नहीं बनाया जा सकता, विशेष रूप से जब मामला नाबालिग से जुड़ा हो।
हालांकि, कुछ कानूनी विशेषज्ञ इस फैसले को वास्तविकता को देखते हुए मानवीय दृष्टिकोण से लिया गया निर्णय मानते हैं।
भविष्य पर प्रभाव
Justice vs Morality:यह फैसला आने वाले मामलों के लिए एक नया और जटिल उदाहरण पेश कर सकता है। इससे POCSO जैसे कानून की सख्ती और उद्देश्य पर प्रभाव पड़ सकता है, और यह सवाल उठता है कि क्या अब शादी को एक कानूनी कवच के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
हमारी विशेष वीडियो रिपोर्ट देखने के लिए The Legal Observer के YouTube चैनल पर जाएं।
फोकस कीवर्ड्स (प्राकृतिक रूप से प्रयुक्त)
Justice vs Morality, सुप्रीम कोर्ट, पॉक्सो कानून, अनुच्छेद 142, बलात्कार की सजा, विवाह और कानून, भारतीय संविधान, विशेषाधिकार