
CJI Gavai sarcasm:देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने हाल ही में महाराष्ट्र में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया, लेकिन इस दौरान राज्य के सबसे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी—चीफ सेक्रेटरी और पुलिस महानिदेशक (DGP)—उनका स्वागत करने नहीं पहुंचे। इस पर CJI गवई ने सार्वजनिक मंच से नाराज़गी जताई और कहा कि “महाराष्ट्र के बड़े अधिकारी प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते।”
यह टिप्पणी न सिर्फ एक प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा को लेकर भी गहरी चिंता उत्पन्न करती है। गवई, जो खुद महाराष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं, ने यह बात नागपुर में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के नए भवन के उद्घाटन समारोह के दौरान कही।
“अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होता”
CJI Gavai ने कहा,
“जब मैं दूसरे राज्यों में न्यायिक कार्यक्रमों में जाता हूं, तो वहाँ के चीफ सेक्रेटरी और DGP खुद रिसीव करने आते हैं। पर महाराष्ट्र में यह संस्कृति नहीं है।”
यह वक्तव्य इशारा करता है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तालमेल की कमी सिर्फ शिष्टाचार तक सीमित नहीं, बल्कि एक व्यापक प्रणालीगत समस्या का संकेत हो सकता है।
CJI Gavai का गृहराज्य और उनकी नाराज़गी
CJI Gavai का जन्म और करियर महाराष्ट्र में ही शुरू हुआ था, और वे मराठी पृष्ठभूमि से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं। ऐसे में महाराष्ट्र में ही उनके साथ हुए इस व्यवहार को लेकर प्रतिक्रियाएं और भी तीखी हो गई हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह “सिर्फ एक स्वागत की चूक” नहीं बल्कि संविधानिक पदों के प्रति सम्मान में गिरावट को दर्शाता है।
क्या है प्रोटोकॉल?
भारत में किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी—विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश—के आगमन पर संबंधित राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों जैसे मुख्य सचिव (Chief Secretary) और पुलिस महानिदेशक (DGP) का उपस्थित रहना शिष्टाचार और सम्मान का प्रतीक होता है। यह न केवल परंपरा है, बल्कि एक औपचारिक प्रोटोकॉल के अंतर्गत आता है जिसे गृह मंत्रालय द्वारा निर्देशित किया गया है।
कानूनी बिरादरी की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद वकीलों और न्यायिक समुदाय में भी असंतोष देखा गया। बॉम्बे हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इस व्यवहार को “निंदनीय” और “अनुचित” बताया।
Legal Helpline और Quote-Unquote सेक्शन में भी इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई है।
क्या प्रशासनिक असहमति बढ़ रही है?
हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति बनी है, जैसे:
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों पर समयसीमा तय करने की चर्चा, जिस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आपत्ति जताई थी। (सम्बंधित खबर पढ़ें)
- राज्य सरकारों द्वारा कोर्ट के आदेशों की अनदेखी, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कड़ी टिप्पणियाँ दी हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो महाराष्ट्र की यह घटना सिर्फ एक ‘औपचारिकता की चूक’ नहीं बल्कि गहरी संवैधानिक शिथिलता का संकेत देती है।
वीडियो देखें:
CJI गवई के बयान पर आधारित रिपोर्टिंग देखें
निष्कर्ष
CJI बी.आर. गवई का बयान सिर्फ एक प्रशासनिक गलती की ओर इशारा नहीं करता, बल्कि एक महत्वपूर्ण चेतावनी है—संविधानिक संस्थाओं के बीच सम्मान, तालमेल और पारस्परिक गरिमा को बनाए रखने की। यदि ऐसे घटनाओं को नजरअंदाज किया गया, तो यह संस्थागत गिरावट का कारण बन सकती हैं।
फोकस कीवर्ड्स:
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