
Supreme Court: हाल ही में एक सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालतें अनंत समय तक बहस नहीं सुन सकतीं। यह टिप्पणी उस समय आई जब एक वकील ने दलीलें पेश करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की।
CJI ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की दक्षता बनाए रखने के लिए समय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। “हमें हर दिन कई केस सुनने होते हैं। यदि एक ही केस में घंटों बहस चलेगी, तो बाकी मामलों को न्याय मिलने में देरी होगी,” उन्होंने कहा।
प्रस्तावित सुधार: तय समय सीमा से कार्यकुशलता बढ़ेगी
सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ऐसे नियम पर विचार कर रहा है जिसमें मुख्य न्यायाधीश की बेंच प्रत्येक पक्ष को बहस के लिए सीमित समय दे सकती है। यह प्रैक्टिस अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में पहले से ही लागू है, जहां वकीलों को पहले से तय समय में अपनी दलीलें पूरी करनी होती हैं।
इस कदम का उद्देश्य लंबित मामलों की संख्या को कम करना और न्यायिक प्रणाली में Time Discipline को बढ़ावा देना है।
बार काउंसिल और वरिष्ठ वकीलों की राय
हालांकि कई वरिष्ठ वकीलों ने इस प्रस्ताव को स्वागतयोग्य बताया, वहीं कुछ ने इससे न्याय के मूल सिद्धांतों पर असर पड़ने की आशंका भी जताई है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के एक पदाधिकारी ने कहा, “यदि कोर्ट समय की सीमा तय करता है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे वकीलों की स्वतंत्रता और मुकदमों की निष्पक्षता प्रभावित न हो।”
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी कहा था, “हर केस की प्रकृति अलग होती है। कुछ मामलों में अधिक समय आवश्यक होता है, तो कुछ में संक्षिप्त दलीलें पर्याप्त होती हैं।”
पहले भी उठ चुके हैं ऐसे कदम
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने बहस की अवधि को सीमित करने की बात की हो। पूर्व CJI एन. वी. रमना ने भी 2021 में कहा था कि न्यायपालिका की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कोर्ट की प्रक्रिया में समयबद्धता लाना जरूरी है। उस समय भी विचार किया गया था कि संविधान पीठ की सुनवाई में प्रत्येक पक्ष को सीमित समय मिले।
अंतरराष्ट्रीय मॉडल से सीख
- अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में हर पक्ष को आमतौर पर 30–40 मिनट मिलते हैं।
- ब्रिटेन में मामलों की प्रकृति के आधार पर बहस की समयसीमा पहले से तय होती है।
सुप्रीम कोर्ट यदि ऐसा कोई नियम अपनाता है तो यह भारतीय न्याय प्रणाली में एक संरचनात्मक सुधार माना जाएगा।
निष्कर्ष: न्यायिक प्रक्रिया को गति देने की तैयारी
भारत में तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से एक बड़ा भाग उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में है। ऐसे में यदि बहस की अवधि पर समय सीमा तय की जाती है, तो यह न्याय में देरी की समस्या को कम कर सकती है।
हालांकि इस कदम के लिए आवश्यक है कि लचीलापन और न्यायसंगत दृष्टिकोण भी अपनाया जाए ताकि जटिल मामलों में उचित समय उपलब्ध हो।
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