
एक साधारण पृष्ठभूमि से भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश तक
भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई की नियुक्ति ऐतिहासिक है। वे न केवल भारत के 51वें CJI बने हैं, बल्कि स्वतंत्र भारत में दलित समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश भी हैं।
उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके न्यायिक योगदान की मान्यता है, बल्कि भारत की न्यायपालिका में सामाजिक विविधता और समावेश की दिशा में एक सकारात्मक संकेत भी है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1961 को महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता रमेश गवई एक प्रतिष्ठित राजनेता और समाजसेवी थे। प्रारंभिक शिक्षा नागपुर में प्राप्त करने के बाद उन्होंने डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर कॉलेज ऑफ लॉ, नागपुर से कानून की पढ़ाई की।
कानूनी शिक्षा के दौरान ही उन्होंने सामाजिक न्याय, संवैधानिक अधिकारों और दलित समुदाय के हितों की गहराई से समझ विकसित की, जो आगे चलकर उनके न्यायिक दृष्टिकोण में झलकने लगा।
कानूनी करियर की शुरुआत और हाईकोर्ट नियुक्ति
1985 में वे महाराष्ट्र बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुए। कुछ वर्षों तक स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने के बाद, उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के लिए असिस्टेंट गवर्नमेंट प्लीडर और फिर अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता के रूप में कार्य किया।
14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए। अपने कार्यकाल में उन्होंने संवैधानिक मामलों, सामाजिक न्याय, भूमि अधिकार और अल्पसंख्यक हितों से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय सुनाए।
सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति
24 मई 2019 को उन्हें भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उनके कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसलों में भाग लिया:
🔹 प्रमुख निर्णय:
- शराबबंदी और सामाजिक सुधार
बिहार सरकार की शराबबंदी नीति पर एक केस में उन्होंने स्पष्ट किया कि सामाजिक सुधार की दिशा में राज्य की नीति को संवैधानिक समर्थन प्राप्त है। - अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) उत्पीड़न मामलों में FIR और गिरफ़्तारी से जुड़े दिशानिर्देशों की समीक्षा
उन्होंने कहा कि “संविधान की आत्मा तभी जीवित रहेगी जब समाज के सबसे कमजोर वर्गों को न्याय मिलेगा।” - राज्यसभा सांसदों की अयोग्यता संबंधी याचिका में
उन्होंने निष्पक्ष सुनवाई की आवश्यकता पर बल दिया, और कहा कि “लोकतंत्र की गरिमा विधायिका और न्यायपालिका की निष्पक्षता में निहित है।”
सामाजिक प्रतिनिधित्व की मिसाल
भारत में न्यायपालिका की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंचने वाले जस्टिस गवई दलित समुदाय के केवल दूसरे व्यक्ति हैं। इससे पहले के.जी. बालकृष्णन 2007 में CJI बने थे।
जस्टिस गवई की यह नियुक्ति न केवल उनके लिए बल्कि उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो जातिगत बाधाओं के बावजूद अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं।
सम्मान, दृष्टिकोण और शैली
उनकी न्यायिक शैली संतुलित, संवेदनशील और समाजोन्मुखी रही है। कई फैसलों में उन्होंने कहा है कि “न्याय केवल तकनीकी पहलुओं से नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी देखा जाना चाहिए।”
वे अपने निर्णयों में आम नागरिक के दृष्टिकोण को भी महत्त्व देते हैं, जिससे कानून सिर्फ कानून न रहकर न्याय का औजार बन सके।
सेवानिवृत्त हो रहे CJI संजीव खन्ना को विदाई
जस्टिस गवई ने 14 मई 2025 को न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया, जिनकी विदाई पर देशभर के वरिष्ठ वकीलों और न्यायमूर्ति साथियों ने भावुक प्रतिक्रियाएं दीं। जस्टिस गवई की नियुक्ति से यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट अब विविधता और सामाजिक समरसता को भी उतना ही महत्व देता है जितना न्यायिक योग्यता को।
निष्कर्ष
जस्टिस बी.आर. गवई की नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका के लिए एक नया अध्याय है। उनके जीवन और करियर से स्पष्ट होता है कि प्रतिनिधित्व और योग्यता साथ-साथ चल सकते हैं।
उनका कार्यकाल उम्मीदों से भरा है—विशेषकर उस भारत के लिए जो समावेशी, संवेदनशील और न्यायसंगत भविष्य की ओर अग्रसर है।
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