
Bombay High Court ने बुधवार को अंडरवर्ल्ड डॉन Dawood Ibrahim के करीबी माने जाने वाले आरोपी को जमानत प्रदान की है। आरोपी पर आर्म्स एक्ट, यूएपीए, और मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे। हालांकि, न्यायमूर्ति की पीठ ने माना कि आरोपी के खिलाफ मुकदमे की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हो सकी है, और वह वर्षों से न्यायिक हिरासत में है।
कोर्ट की टिप्पणी: “ट्रायल के बिना जेल में रखना नाइंसाफी”
न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा:
“किसी भी व्यक्ति को केवल आरोपों के आधार पर वर्षों तक जेल में रखना न केवल उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति को भी उजागर करता है।”
कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को न्यायपूर्ण सुनवाई का अधिकार है, और जब ट्रायल शुरू ही नहीं हुआ हो, तब तक जेल में रखना तर्कसंगत नहीं है।
आरोपी के वकील का पक्ष
आरोपी के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ “दाऊद इब्राहिम से कथित संबंध” के आधार पर जेल में डाला गया है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले चार वर्षों से ट्रायल शुरू नहीं हो पाया है, जिससे लंबी प्री-ट्रायल डिटेंशन हो रही है।
सरकारी पक्ष ने जताई चिंता
सरकारी पक्ष ने इस जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है और दाऊद इब्राहिम से उसके संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से गंभीर हैं। लेकिन कोर्ट ने कहा कि केवल आशंका के आधार पर आरोपी की आज़ादी नहीं छीनी जा सकती जब तक ट्रायल में कोई ठोस प्रमाण सामने न आए।
न्यायिक देरी पर उठे सवाल
यह मामला एक बार फिर उस गंभीर मुद्दे की ओर इशारा करता है कि भारत में ट्रायल प्रक्रियाएं कितनी धीमी हैं। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी इस पर चिंता जताई है कि लाखों केस वर्षों तक लंबित रहते हैं, जिससे निर्दोषों को भी जेल में समय काटना पड़ता है।
इस फैसले का कानूनी महत्व
यह निर्णय बताता है कि अदालतें केवल आरोपों के आधार पर नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी सजग हैं। यह मामला आगे आने वाले कई केसों के लिए प्रेसिडेंट वैल्यू रखता है, जहां ट्रायल लंबा खिंचने के कारण जमानत याचिकाएं दायर की जाएंगी।
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Focus Keywords:
बॉम्बे हाईकोर्ट, दाऊद इब्राहिम, जमानत आदेश, न्यायिक प्रक्रिया, लंबी जेल, ट्रायल डिले, भारतीय संविधान अनुच्छेद 21
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