लिंग चयन के लिए सिर्फ डॉक्टरों को ही दंड क्यों?

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लिंग चयन के लिए सिर्फ डॉक्टरों को दंड क्यों जबकि अपराध में भागीदार तो पूरा परिवार है
भारत के लिए यह आज भी शर्मा का विषय बना हुआ है, कि यहां की बहुत सी महिलाएं खुद महिला होते हुए भी बेटी से ज्यादा एक बेटे को जन्म देना पसंद करती हैं। सर्वे के अनुसार महिलाओं के इस स्वभाव का कारण उनका खुद का बुरा अनुभव है। अपने बचपन में अपने ही घर वालों से मिले भेदभाव के कारण वह बेटी की चाह नहीं रखती हैं। लड़कियों के प्रति भेदभाव और बेटे की असीम चाह ने ही लिंग जाँच के लिए टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को जन्म दिया है।
भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए सरकार ने 1994 में पीसीपीएनडीटी अधिनियम (PCPNDT ACT) ऐक्ट लागू किया गया था। लेकिन इस तरह के मामलों में अभियोजन और पुलिस का सुस्त रवैया के कारण सकारात्मक परिणाम नहीं आ पा रहे हैं।
PCPNDT Act के तहत लिंग जांच करना, चयन करना या फिर करवाना और इसमें किसी भी प्रकार का प्रचार या सहायता करना कानूनन जुर्म है। जिसमें 5 साल तक की सजा और ₹1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। इस अपराध में शामिल डाक्टर का लाइसेन्स भी रद्द किया जा सकता है।
PCPNDT बहुत ही कठोर अधिनियम है। इसे डॉक्टरों और अस्पतालों पर अत्यंत कड़ाई से लागू भी किया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत अनजाने में हुई फॉर्म भरने में त्रुटियों की सजा भी वही है और उतनी ही कठोर है, जो जन्म पूर्व लिंग जांच करने की है।
अर्थशास्त्र में डिमांड एंड सप्लाई का एक अध्याय है। जिसमें यह बताया गया है कि किसी चीज़ की सप्लाई तभी होती है जब लोगों के बीच उसकी डिमांड होती है। यह नियम जन्म से पूर्व लिंग जांच कराने पर भी लागू होती है। यह गर्भवती स्त्री या उसका परिवार ही है, जो जन्म से पूर्व बच्चे के लिंग का चयन करने का कोई न कोई रास्ता तलाशता रहता है।
कोई भी अल्ट्रासाउंड या जेनेटिक सेंटर या उसमें काम करने वाले डॉक्टर और अन्य कर्मचारी किसी भी महिला को इस ओर न तो प्रोत्साहित करते हैं और न ही लिंग चयन करवाने का अनुरोध करते हैं। यह मांग बराबर गर्भवती महिला के परिवार की ओर से ही आती है और वास्तव में उस महिला को उसके परिवार के ही द्वारा लिंग चयन के लिए मजबूर किया जाता है।

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