CourtRoom में Mobile ले जाने को लेकर क्या है क़ानून, हल्की लापरवाही पड़ेगी भारी, हो सकता है जुर्माना

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आज के समय में इंसान मोबाईल फोन के बिना एक पल रहना पसंद नहीं करता लेकिन जब भी आप किसी अदालत में जाते हैं तो हमेशा ध्यान रखिए कि कोर्ट रूम (court room) में मोबाइल ले जाने से पहले मोबाइल फोन को स्विच ऑफ कर दें क्योंकि अगर आपकी मोबाइल की घंटी अदालत में बज गई, तो आपको सजा भी हो सकती है।

गुजरात हाई कोर्ट का फैसला – गुजरात हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक बुजुर्ग के मोबाइल फोन (Mobile phone) की घंटी बजने से नाराज चीफ जस्टिस अरविंद कुमार ने उसपर जुर्माना घोषित कर दिया। जुर्माने के रूप में न्यायालय ने कहा पहली बार मोबाइल की घंटी बजने पर 100 रुपये का जुर्माना देना होगा। अगर दूसरी बार मोबाइल की घंटी बजती है, तो जुर्माने की राशि 500 रुपये होगी और अगर तीसरी बार मोबाइल की घंटी बज गई तो जुर्माने की राशि 1000 रुपये होगी और साथ ही उसके मोबाइल फोन को शाम 5 बजे तक या जब तक कोर्ट बंद नहीं हो जाता तब तक जमा करना पड़ेगा। चीफ जस्टिस ने कहा कोर्ट रूम के डेकोरम का पालन सभी को करना अनिवार्य होगा, साथ ही रजिस्टार को आदेश दिया कि आगे से ऐसा दोबारा ना हो इसके लिए नियमों को सख्ती से पालन करवाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने – वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को न्यायालय कक्ष में मोबाइल ले जाने की इजाजत दी थी, लेकिन कहा था कि मोबाइल फोन को साइलेंट मोड पर रखना होगा और यदि फोन के इस्तेमाल के कारण कोर्ट रूम में किसी तरह की कोई परेशानी हुई तो मोबाइल फोन को ही जब्त कर लिया जाएगा।

न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण फैसले – मुंबई हाई कोर्ट ने ऐसे ही वर्ष 2017 में अपने एक फैसले में कहा था कि वीडियो या ऑडियो रिकॉर्ड करने के लिए मोबाइल या कोई अन्य उपकरण अदालत कक्ष में नहीं ला सकते हैं। इसमें दोषी पाए जाने पर अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है, हालांकि वकीलों पर यह नियम पूरी तरह से लागू नहीं होते लेकिन वादियों एवं मुलाक़ाती की यह जिम्मेदारी है कि कोर्ट रूम के बाहर अपने मोबाइल फोन को सुरक्षित स्थान पर रख दें जिसके लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे।

चलिए जानते हैं ये अवमानना क्या होता है : अवमानना अधिनियम 1971 – 1. सिविल 2. आपराधिक

सिविल अवमानना – न्यायालय के द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री, आदेश, रिट, या किसी अन्य प्रक्रिया का जान-बूझकर अवज्ञा या उल्लघंन करना।

आपराधिक अवमानना – न्यायालय के किसी बात के प्रकाशन से है, चाहे वो लिखित या मौखिक हो या चित्रित या चिन्हित हो या फिर किसी और तरीके से की गई हो, इसको न्यायालय की अवमानना कहा जाएगा।न्यायालय की अवमानना होने पर सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय को दंडित करने का अधिकार प्राप्त है। जिसमे  न्यायालय की अवहेलना करने पर व्यक्ति को 6 महीने की साधारण करावास या 2000 रुपये का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को शक्ति प्रदान करता है कि अवमानना के आरोपी को हाजिर करने, जांच करने तथा दंडित करने में सक्षम बनाए।

अनुच्छेद 129 के तहत सर्वोच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय है तथा वह अवमानना हेतु दंड देने की शक्ति रखता है।

और अनुच्छेद 215 के तहत उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय है तथा स्वयं की अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति प्रदान करता है।


Prakher Pandey
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