युएसए के दौरे पर गए भारत के मुख्य न्यायाधीश एन॰ वी॰ रमना ने सैन फ़्रांसिस्को में इंडो-अमेरिका समाज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने विविध संस्कृतियों के समावेश और सहिष्णुता (tolerance) को बढ़ावा देने के महत्व के बारे में बात की।
यूएसए की तारीफ़ करते हुए उन्होंने ने कहा, “यह अमेरिकी समाज की सहिष्णुता और समावेशी नीति है जो दुनिया भर से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अपने देश में काम करने के लिए आकर्षित कर पाती है और वही प्रतिभाएँ यूएसए के विकास में योगदान करती हैं।”
सभी तरह की संस्कृतियों का सम्मान करने वाले राष्ट्र की प्रगति तय
CJI ने समावेशी नीति का राष्ट्र के विकास में योगदान की महत्ता पर ज़ोर देते हुए कहा कि “जो राष्ट्र सभी का खुले हाथों से स्वागत करता है, सभी संस्कृति व भाषा का सम्मान करता है, उसका प्रगतिशील, शांतिमय और खुशहाल होना तय है।
आमजन में संविधान के प्रति जागरूकता का अभाव
अपने सम्बोधन के दौरान CJI ने संविधान को लेकर लोगों में जागरूकता के अभाव पर चर्चा की। उन्होंने ने कहा, “आज़ादी के 75 साल बाद भी संस्थानों को सौंपी गई सैंवेधानिक भूमिका को लेकर लोगों में अज्ञानता है।” ज्यूडिशरी को एक मात्र स्वतंत्र संस्थान बताते हुए CJI ने कहा, “आम जन की अज्ञानता का लाभ उन शक्तियों को मिल रहा है जो ज्यूडिशरी को नीचे गिरना चाहती हैं।”
CJI ने कहा, “संविधान में सभी संस्थानों की भूमिका और ज़िम्मेदारी तय की गई है, लेकिन उन्हें खेद है अभी हम अपनी भूमिका को सही ढंग से नहीं निभा पा रहे हैं।” इसके लिए उन्होंने, संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज के प्रति लोगों में समझ के अभाव को दोषी ठहराया।
राजनीतिक पार्टियों पर साधा निशाना
अपने सम्बोधन के दौरान उन्होंने ने सरकार और विपक्ष को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, “सत्ता में बैठी पार्टी सोचती है कि सभी सरकारी कार्यों का ज्यूडिशरी को समर्थन करना चाहिए। जबकि विपक्षी दलों को लगता है कि ज्यूडिशरी को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।” CJI ने दोनों की सोच को दोषयुक्त बताया और कहा कि ज्यूडिशरी केवल भारत के संविधान के प्रति जवाबदेह है”।
उन्होंने ने कहा कि “संविधान के प्रति आम लोगों की अज्ञानता के कारण ऐसी सोच को बढ़ावा मिल रहा है। लोकतंत्र में सभी की भागीदारी और संस्थानों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में आमजन को जागरूक करना ज़रूरी है”