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Justice Sanjay Kishan Kaul Currently The Most Senior Judge of Supreme Court of India

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Sanjay Kishan Kaul is currently the Most senior judge of Supreme Court of India. He is former Chief Justice of Madras High Court and Punjab and Haryana High Court and Former Judge of Delhi High Court. He has also served as acting chief justice of Delhi High Court.

Sanjay Kishan Kaul was born on 26 December 1958 to a Kashmiri Hindu Brahmin family. Kaul hails from the family of the Dattatreya Kauls of Srinagar. His great-great-grandfather, Raja Suraj Kishan Kaul, was the Revenue minister in the Regency council of the princely state of Jammu and Kashmir. His great-grandfather, Sir Daya Kishan Kaul, was a statesman and diplomat who served as the finance minister of Jammu & Kashmir state. His grandfather, Raja Upinder Kishen Kaul, had a distinguished career in public service. Kaul’s brother, Neeraj Kishan Kaul, was also a judge of the Delhi High court, having been appointed in the summer of 2009.

During his 19-year career, he handled mainly commercial, civil & writ matters in Delhi high court & Supreme court of India. As a judge Kaul was appointed additional judge of Delhi high court on 3 May 2001, and was made a permanent judge in 2003. He was also the acting chief justice of Delhi high court in September 2012.He became Chief Justice of Punjab and Haryana High Court in June 2013.

The Chancellor of TNDALU is the chief justice of Madras high court. Hence he served as the chancellor of TNDALU and he has also visited the college and addressed the students.

Notable Judgments

2008 Judgement as Delhi HC Judge, where Kaul dismissed the charges levied against M F Husain for his painting of a lady later termed as ‘Bharat Mata’, accusing him of obscenity. Upholding free speech and expression, Kaul expressed agreement with Husain’s contention that there was no deliberate intention on his part to hurt anybody’s religious feeling as the figure actually represented an “anthropomorphic depiction of a nation” in the form of a distressed woman.

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International Criminal Court क्या हैं? जानिए इसके अधिकारों के बारे में

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अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय यानी इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) एक स्थायी Tribunal हैं। इसे रोम कानून द्वारा स्थापित किया गया है, जो नरसंहार, युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोपी व्यक्तियों की जांच कर मुकदमा चलाने और सजा सुनाने का काम करता है। इसकी शुरूआत 01 जुलाई 2002 को, 60 देशों द्वारा समझौते की पुष्टि के बाद की गई। इसके बाद ही अदालत ने बैठके शुरू की। इसका मुख्यालय नीदरलैंड के ‘द हेग’ में है।

रूसी राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी, ICJ ने वार क्राइम के लिए ठहराया जिम्मेदार

ICC को ऐसे जघन्य अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए एक कोर्ट के रूप में बनाया गया था, जहां नेशनल कोर्ट कार्रवाई करने में विफल रहती हैं। वहीं इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) राष्‍ट्रों के बीच उत्पन्न हुए विवादों को सुनता और सुलझाता है, जबकि ICC व्यक्तियों के मुकदमों को सुनता है। अदालत का अधिकार क्षेत्र 01 जुलाई, 2002 के बाद हुए अपराधों तक फैला हुआ है, जो या तो उस राज्य में किए गए थे जिसने समझौते की पुष्टि की है या ऐसे राज्य के किसी नागरिक द्वारा किया गया है।

ICC की स्‍थापना के विचार की व्यापक रूप से प्रशंसा की गई। जब तक यह लागू हुआ, तब तक लगभग 140 देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे। मध्य पूर्व या एशिया के कई देश इसमें शामिल हुए मगर 2002 तक, चीन, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने ICC द्वारा अभियोजन से छूट देने के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति सेना से अपने सैनिकों को वापस लेने की धमकी दी थी। इसके बावजूद, इसकी पहली बैठक के 5 साल के भीतर 100 से अधिक देशों ने संधि की पुष्टि की। बता दें, भारत भी इसकी सदस्‍यता से बाहर है।

OROP भुगतान पर सुप्रीम कोर्ट का नया फॉर्मूला,पूर्व सैनिकों के बकाया के लिए तारीख तय

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सुप्रीम कोर्ट ने वन रैंक वन पेंशन (OROP) के अंतर्गत पूर्व सैन्य कर्मियों को बकाये का भुगतान करने के संबंध में केंद्र द्वारा सीलबंद लिफाफे में दिए गए जवाब को मानने से सोमवार को इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार OROP योजना के संदर्भ में 2022 के फैसले का पालन करने के लिए बाध्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश देते हुए कहा कि, ‘छह लाख पेंशनभोगी परिवार और वीरता पदक विजेताओं को 30 अप्रैल तक OROP के बकाये का भुगतान किया जाए। वहीं 70 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र के रिटार्यड सैन्य कर्मियों को इस साल 30 जून तक एक या उससे अधिक किस्तों में OROP के बकाये का भुगतान किया जाए।

‘CJI D Y चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि, ‘हमें सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में जवाब दिए जाने के चलन पर रोक लगाने की जरूरत है.यह मूल रूप से निष्पक्ष न्याय दिए जाने की बुनियादी प्रक्रिया से अलग है।’ CJI चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से सीलबंद लिफाफे में जवाब दिए जाने के खिलाफ हूं। अदालत में पारदर्शिता होनी चाहिए.यह आदेशों को अमल में लाने को लेकर है। इसमें गोपनीय क्या हो सकता है।’

सुप्रीम कोर्ट OROP बकाये के भुगतान को लेकर ‘इंडियन एक्स-सर्विसमैन मूवमेंट’ (IESM) की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। अदालत ने OROP के बकाये का चार किश्तों में भुगतान करने का ‘एकतरफा’ फैसला करने के लिए 13 मार्च को सरकार को कहा था।

अमृतपाल को हिरासत में रखना अवैध, मामला पहुंचा हाईकोर्ट, पंजाब सरकार सवालों के घेरे में

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अमृतपाल सिंह प्रमुख “वारिस पंजाब के” को पुलिस ने कड़ी मशक्कत करने के बाद हिरासत में ले लिया। अमृतपाल सिंह पर पुलिस ने काफी गंभीर आरोप लगाए हैं। लेकिन इसी बीच अमृतपाल सिंह को अवैध हिरासत में रखने का आरोप लगा हैं. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार समेत अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

बठिंडा के रहने वाले इमरान सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि याचिकाकर्ता ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के कानूनी सलाहकार हैं। इस संगठन के प्रमुख दीप सिद्धू थे और उनकी मौत के बाद यह पद अमृतपाल ने संभाला था। 18 मार्च को केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार के साथ मिलकर जालंधर से अमृतपाल को अवैध हिरासत में ले लिया। 

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि अमृतपाल सिंह को अवैध हिरासत में लिया गया है और इसका कारण तक स्पष्ट नहीं किया गया है। अमृतपाल के परिजनों तक को इस संदर्भ में जानकारी नहीं दी जा रही है, जो उसकी जान को बड़ा खतरा है। याचिकाकर्ता ने सुरक्षित अवैध हिरासत से छुड़ाने का निर्देश जारी करने की हाईकोर्ट से अपील की। साथ ही वारंट ऑफिसर नियुक्त करने का पंजाब सरकार को निर्देश जारी करने की अपील की। 

याचिकाकर्ता ने बताया कि वारंट ऑफिसर की नियुक्ति के लिए वह तय की गई फीस जमा करवाने को तैयार हैं। याचिका पर रविवार को ही सुनवाई करने की अपील की गई थी। इसके बाद जस्टिस एनएस शेखावत के निवास स्थान पर याची पक्ष को सुना गया और याचिका पर पंजाब सरकार समेत अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया है।

रूसी राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी, ICJ ने वार क्राइम के लिए ठहराया जिम्मेदार

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रूस और यूक्रेन के बीच करीब एक साल से भी ज्यादा समय से जंग चल रही है। दोनों देशों में से कोई भी हार मानने के लिए तैयार नहीं है। इसी बीच इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICJ) ने यूक्रेन में युद्ध अपराधों के लिए रूसी राष्ट्रपति Vladimir Putin के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के कब्जे वाले क्षेत्रों से रूसी संघ में लोगों खासकर बच्चों के अवैध ट्रांसफर के युद्ध अपराध के लिए कथित रूप से जिम्मेदार हैं।

रूस ने यूक्रेन की तरफ से लगाए गए इस तरह के अत्याचार के आरोपों को हर बार खारिज किया है। ICJ के प्री-ट्रायल चैंबर-2 ने पुतिन समेत दो अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है। इनमें नाम मारिया अलेक्सेयेवना लवोवा-बेलोवा का है। 

कोर्ट का कहना है कि, 24 फरवरी, 2022 को रूस ने हमले की शुरुआत से ही यूक्रेनी कब्जे वाले क्षेत्र में कथित रूप से अपराधिक गतिविधि शुरू कर दी थी। इस बात पर विश्वास करने के लिए उचित आधार हैं कि पुतिन ने सीधे तौर पर, दूसरों के साथ संयुक्त रूप से या दूसरों के माध्यम से ऐसे कृत्यों को करने के लिए व्यक्तिगत आपराधिक जिम्मेदारी वहन की है.

ICJ ने कहा, कि रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय में बच्चों के अधिकारों की आयुक्त मारिया अलेक्सेयेवना लवोवा-बेलोवा बच्चों के अवैध निर्वासन और लोगों के अवैध ट्रांसफर के युद्ध अपराध के लिए कथित रूप से जिम्मेदार हैं। यूक्रेन ने कई बार रूस पर वार क्राइम के आरोप लगाए हैं। 

इसी बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सोमवार से रूस की यात्रा पर जाने वाले हैं. इस दौरान वह व्लादिमीर पुतिन के साथ अहम बातचीत करेंगे और यूक्रेन में जंग को खत्म करने के लिए शांति वार्ता की पैरवी भी कर सकते हैं। वहीं अमेरिका ने शी-पुतिन की बैठक से पहले कहा कि वह यूक्रेन में संघर्ष विराम के आह्वान का विरोध करेगा।

जमीन पाने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करना गलत-CJI डीवाई चंद्रचूड़

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सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायपालिका अपनी शक्तियों का इस्तेमाल वकीलों को चैंबर बनाने के लिए जमीन देने के लिए करेगी तो इससे गलत संदेश जाएगा. SCBA की ओर से दायर याचिका पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनवाई की। दरअसल, SCBA के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील विकास सिंह की ओर दाखिल की गई इस याचिका पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले का न्यायिक हल निकालने की जगह बार एसोसिएशन को कोर्ट पर भरोसा रखना चाहिए कि सरकार से इस विषय पर बात की जाएगी।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने इस मामले में कहा कि वकील हमारे संस्थान का हिस्सा हैं. क्या हमें अपने समुदाय की रक्षा के लिए न्यायिक निर्देशों का इस्तेमाल करना चाहिए? यह बहुत ही गलत संदेश भेजता है कि न्यायपालिका अपनी शक्तियों का इस्तेमाल जमीन पाने के लिए कर रही है. आज यह जमीन है, कल कुछ और होगा. ऐसा नहीं लगना चाहिए कि कोर्ट अपनी न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल अपने हिसाब से कर रही है।

महाराष्ट्र राजनीतिक संकट: राज्यपाल रहे कोश्यारी के कार्यकाल पर कोर्ट ने उठाए सवाल

SCBA की ओर से उठाए गए मुद्दे को सही मानते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हमें चिंता नहीं है. हम इस बारे में सरकार से बात करेंगे. हमारी जरूरतें बढ़ रही हैं और हम उन्हें अपनी मांगों के लिए मनाने की कोशिश कर सकते हैं.

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रशासनिक प्रक्रिया के लचीलेपन का एक खास फायदा है. कोर्ट में हम हार सकते हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर बातचीत काफी आगे तक जाती है. वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कोर्ट में कहा कि हमारी इकलौती चिंता ये है कि मामले को किनारे न कर दिया जाए. याचिका दाखिल करने का उद्देश्य सरकार के साथ बातचीत शुरू करना ही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार हमारी जरूरतों को प्रशासनिक स्तर पर बहुत सावधानी से लेती है. न्यायपालिका को बिना कटौती के 7000 करोड़ रुपये दिए गए हैं, क्योंकि केंद्र ने महसूस किया कि ये समय की जरूरत है. ये ऐसे मामले हैं जिन पर हमें लगातार सरकार के साथ जुड़ना चाहिए।

अशनीर ग्रोवर की बढ़ी मुश्किलें,आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के मूड में नहीं BharatPe

अगस्त 2022 में SCBA ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर वकीलों के चैंबर बनाने के लिए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को 1.33 एकड़ जमीन दिए जाने के निर्देश देने की मांग की थी. इससे पहले इसी साल 2 मार्च को विकास सिंह CJI डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने पेश हुए थे और कई बार बताए जाने के बावजूद मामले की सुनवाई न होने की शिकायत की. इस दौरान वरिष्ठ वकील सिंह ने तेज आवाज में कहा था कि जजों के घर के बाहर वकीलों का प्रदर्शन शुरू हो सकता है. जिस पर CJI ने सिंह से अपनी आवाज कम करने के लिए कहा था और चेतावनी दी थी कि इस तरह का व्यवहार सुप्रीम कोर्ट में नहीं चलेगा। 

शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद SCBA की ओर से CJI को फैसला सुरक्षित रखने के लिए एक धन्यवाद पत्र जारी किया गया. जिसमें कहा गया कि 70 साल के इंतजार के बाद बार की एक बड़ी जीत है। 

महाराष्ट्र राजनीतिक संकट: राज्यपाल रहे कोश्यारी के कार्यकाल पर कोर्ट ने उठाए सवाल

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महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है। शिवसेना के इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल पर बड़े सवाल उठाए और कहा कि वह इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक अलग परिणाम निकलेगा. सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है?’

जमीन घोटाला मामले में लालू यादव और राबड़ी देवी को राहत: महाराष्ट्र राजनीतिक संकट: राज्यपाल रहे कोश्यारी के कार्यकाल पर कोर्ट ने उठाए सवाल

संविधान पीठ ने कहा, ‘क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? सरकार को गिराने में राज्यपाल स्वेच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते. लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है. सुरक्षा के लिए खतरा विश्वास मत का आधार नहीं हो सकता.’ CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने राज्यपाल से कहा कि उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था. ‘उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है?’

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ एकनाथ शिंदे गुट से कहा कि विभाजित और प्रतिद्वंद्वी गुट के बीच अंतर बहुत कम है और स्पीकर के लिए यह कहना बहुत आसान है कि यह विभाजन का मामला है या नहीं, लेकिन सवाल यह है कि पीठासीन अधिकारी के लिए प्रथम दृष्टया विचार करने के लिए क्या रूपरेखा होनी चाहिए. शिंदे समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील हरीश साल्वे ने CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के सामने प्रस्तुत किया कि, तत्कालीन महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार को पिछले साल सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के लिए बुलाकर कुछ भी गलत नहीं किया।

जमीन घोटाला मामले में लालू यादव और राबड़ी देवी को राहत

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जमीन घोटाला मामले से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आ रही है. इस मामले में पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव, बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी और 14 अन्य लोग की बुधवार को दिल्ली की एक अदालत में पेशी हुई.पेशी को दौरान दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने 50 हजार के निजी मुचलके पर जमानत दे दी है। इस मामले में अगली सुनवाई 29 मार्च को होगी।

बता दें, कि यह मामला लालू प्रसाद यादव के साल 2004 से 2009 के बीच रेल मंत्री रहने के दौरान उनके परिवार को उपहार में दी गई या बेची गई जमीन के बदले रेलवे में की गई कथित नियुक्तियों से जुड़ा हुआ है।

अशनीर ग्रोवर की बढ़ी मुश्किलें,आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के मूड में नहीं BharatPe

सीबीआई के आरोप

CBI ने लालू यादव और उनके परिवार पर यह आरोप लगाए है कि रेलवे में भर्ती के लिए भारतीय रेलवे के निर्धारित मानदंडों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हुए कई नियुक्तियां की गईं थीं.साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि नौकरी के बदले में उम्मीदवारों ने सीधे या अपने करीबी रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के माध्यम से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख एवं तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्यों को बाजार दरों से काफी कम कीमत पर जमीन बेच दी या गिफ्ट में दी.

पत्नी को कोर्ट से मिला न्याय, 25 साल घरेलू काम करने पर मिलेंगे करोड़ों रुपये

ईडी की जांच के बाद दावा

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने नौकरी के बदले जमीन घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव की बेटियों के निवास स्थान सहित 24 जगहों पर छापेमारी की थी. ईडी ने बताया था कि उसे छापेमारी में 1 करोड़ रुपये नकद, 1900 अमेरिकी डॉलर, करीब 540 ग्राम गोल्ड, सोने के 1.5 किलोग्राम जेवरात (इसकी कीमत करीब 1 करोड़ 25 लाख रुपये) और कुछ आपत्तिजनक दस्तावेज मिले हैं. ईडी के मुताबिक, मामले की तहकीकात के दौरान पता चला कि करीब 600 करोड़ रुपये में से 350 करोड़ की अचल संपति खरीदी गई और 250 करोड़ रुपये बेनामी प्रोपर्टी के जरिए रूट्स किए गए. जांच में सामने आया कि इसमें से ज्यादातर जमीन पटना के पॉश इलाकों में गलत तरीके से तत्कालीन रेलवे मंत्री लालू यादव के जरिए भारतीय रेलवे में जॉब देने के नाम पर हड़प ली गई. इनकी आज के दौर में कीमत 200 करोड़ रुपये है.

अशनीर ग्रोवर की बढ़ी मुश्किलें,आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के मूड में नहीं BharatPe

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भारतपे और भारतपे के पूर्व CEO अशनीर ग्रोवर के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है। इस विवाद के बीच खबर आई कि दोनों में कोर्ट के बाहर समझौता हो सकता है, लेकिन भारतपे ने इस बात पर आपना रूख साफ कर दिया हैं। भारतपे ने कहा है कि कंपनी और अशनीर ग्रोवर के बीच समझौते की कोई बात नहीं चल रही है। बता दें कि भारतपे ने अशनीर ग्रोवर, उनकी पत्नी और उनके परिवार के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में 88.6 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला दायर किया हुआ हैं। ये मामला अब भी चल रहा है। कंपनी कि ओर से कहा गया है कि भारतपे और ग्रोवर या उनके परिवार के बीच किसी तरह के समझौते का सुझाव देने वाली रिपोर्ट निराधार और झूठी है।

क्या है मामला

अशनीर ग्रोवर, उनकी पत्नी और परिवार पर दिसंबर 2022 में भारतपे ने धोखाधड़ी,पैसों की हेराफेरी, जालसाजी, दस्तावेज निर्माण और गबन जैसे कई गंभीर आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करवाया था। इस मामले में कंपनी अपना जवाब दर्ज करा चुकी है। फिनटेक प्लेटफॉर्म भारतपे की ओर से सोमवार को कहा गया कि कंपनी और उसके पूर्व संस्थापक और प्रबंध निदेशक अशनीर ग्रोवर के बीच कोई समझौता वार्ता नहीं चल रही है। कंपनी ने एक न्यूज एजेंसी को दिए बयाव में कहा कि भारतपे और मिस्टर ग्रोवर या उनके परिवार के बीच किसी तरह के समझौते का सुझाव देने वाली रिपोर्ट पूरी तरह निराधार और असत्य है।

दिल्ली हाई कोर्ट में नौकरी पाने का सुनहरा मौका, जल्दी करें आवेदन

भारतपे ने ग्रोवर और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में दीवानी मुकदमे के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू की और दिसंबर 2022 में धोखाधड़ी, हेराफेरी, विश्वास का आपराधिक उल्लंघन, जालसाजी, दस्तावेज निर्माण और गबन के लिए आर्थिक अपराध शाखा के साथ आपराधिक शिकायत की शिकायत की। भारतपे ने कहा, हमें देश की न्यायिक और कानूनी व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ग्रोवर और उनकी पत्नी माधुरी जैन ग्रोवर को कंपनी द्वारा दायर एक मुकदमे पर समन जारी किया था, जिसमें फिनटेक फर्म के खिलाफ मानहानिपूर्ण बयान देने से रोकने की मांग की गई थी, जिसमें दंपति पर धन की हेराफेरी का आरोप लगाया गया था।

दिल्ली हाई कोर्ट में नौकरी पाने का सुनहरा मौका, जल्दी करें आवेदन

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दिल्ली हाई कोर्ट ने सीनियर पर्सनल असिस्टेंट और पर्सनल असिस्टेंट के पदों पर भर्ती के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया है. इन पदों के लिए कुल 127 रिक्तियां भरी जाएंगी. उम्मीदवार जो भी दिल्ली हाई कोर्ट में नौकरी करना चाहते हैं, वे आधिकारिक वेबसाइट delhihighcourt.nic.in पर जाकर अप्लाई कर सकते हैं. इन पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया 06 मार्च 2023 से शुरू हुई है और 31 मार्च तक होगी.

पदो की संख्या

सीनियर पर्सनल असिस्टेंट: 60

जनरल-11, EWS-10, OBC-23, SC-9, ST-7

पर्सनल असिस्टेंट: 67

जनरल – 29, EWS- 6, OBC- 17, ST- 10, ST- 5

योग्यता

सीनियर पर्सनल असिस्‍टेंट- किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट की डिग्री और स्टेनो (अंग्रेजी) में 110 शब्द प्रति मिनट की स्पीड होनी चाहिए. इसके अलावा 40 शब्द प्रति मिनट की कंप्यूटर पर टाइपिंग स्पीड होनी चाहिए.पर्सनल असिस्‍टेंट- किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट की डिग्री और स्टेनो (अंग्रेजी) में 110 शब्द प्रति मिनट की स्पीड होनी चाहिए. इसके अलावा 40 शब्द प्रति मिनट की कंप्यूटर पर टाइपिंग स्पीड होनी चाहिए

उम्मीदवार जो इन पदों के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उनकी आयुसीमा 18 वर्ष से 32 वर्ष के बीच होनी चाहिए.

अंग्रेजी टाइपिंग टेस्टअंग्रेजी स्टेनो टेस्टमुख्य (वर्णनात्मक) परीक्षाइंटरव्यू
ये है आवेदन का लिंक और नोटिफिकेशन Delhi High Court Recruitment 2023 के लिए अप्लाई करने का लिंकDelhi High Court Recruitment 2023 नोटिफिकेशन

सामान्य/ओबीसी-एनसीएल/ईडब्ल्यूएस के लिए आवेदन शुल्क- 1000/- रुपयेअनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / विकलांग व्यक्ति के लिए आवेदन शुल्क – 800/- रुपये