नहीं रहे डॉ भीम सिंह…300 पाकिस्तानी क़ैदियों को भारतीय जेल से कराया था रिहा

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जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के संस्थापक और सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ भीम सिंह ने मंगलवार सुबह 8:45 पर आख़िरी साँस ली। लम्बे समय से बीमार चल रहे 80 वर्षीय डॉ भीम सिंह की तबियत बिगड़ने पर जम्मू के जीएमसी अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित किया।  

उनकी मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा सहित कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने शोक व्यक्त किया।

17 अगस्त 1941 को उधमपुर जिले में जन्मे डॉ भीम सिंह अपने पूर्ण जीवनकाल में विभिन्न भूमिकाओं में नज़र आए। 1966 में छात्र आंदोलन से राजनीति में कदम रखने के बाद उन्होंने वकालत और शिक्षा के क्षेत्र में भी ख्याति प्राप्त की। 

कैम्ब्रिज लॉ कॉलेज के प्रोफ़ेसर रहे 

मोटरसाइकिल से दुनिया भर के 130 से ज्यादा देशों की यात्रा करने वाले डॉ सिंह ने लंदन विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। 1971 में लंदन विश्वविद्यालय के सचिव चुने जाने वाले वह पहले भारतीय थे। प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज लॉ कॉलेज में उन्होंने ने इंटर्नैशनल लॉ के प्रोफ़ेसर के तौर पर सेवा दी।

राजनीतिक जीवन 

जम्मू कश्मीर वापस लौटने के बाद डॉ सिंह ने 1982 में पैंथर्स पार्टी की स्थापना की। वह दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे। 1988 लोकसभा चुनाव में धांधली कर उधमपुर संसदीय सीट से उन्हें हराया गया। चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ डॉ सिंह ने अदालत का रुख़ किया। 4 साल की क़ानूनी लड़ाई के बाद जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन तब तक संसद का वह सत्र भंग हो चुका था। 

जम्मू कश्मीर में बार काउंसिल की स्थापना

जम्मू कश्मीर में बार काउंसिल की स्थापना में उनकी सबसे बड़ी भूमिका रही। 1961 के बाद जहां देश के सभी प्रदेशों में बार काउंसिल की स्थापना कर दी गई थी लेकिन जम्मू कश्मीर को इसे हासिल करने में 56 वर्ष लग गए। एक लंबी अदालती लड़ाई के बाद 2017 में डॉ भीम सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार को हराकर जम्मू कश्मीर को बार काउंसिल चुनने का हक़ दिलवाया।

इस मामले की सुनवाई के दौरान भारत सरकार का पक्ष रख रहे वकीलों ने तर्क दिया कि जम्मू और कश्मीर, बार चुनाव कराने के लिए अनुकूल नहीं है, जिसपर भीम सिंह ने सरकार के तर्क को चुनौती देते हुए कहा कि, यदि राज्य में उग्रवाद की वजह से बार काउंसिल के चुनाव नहीं हो सकते हैं, तो विधानसभा और संसदीय चुनाव कराने का भी कोई मतलब नहीं है।

वकालत के क्षेत्र में योगदान

एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील के रूप में उन्होंने पूरे देश में हजारों असहाय कैदियों, किसानों, कर्मचारियों और युवाओं की सहायता की। अपने राजनीतिक दल और राज्य कानूनी सहायता समिति के माध्यम से उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में रिट दायर कर भारतीय जेलों में बंद 300 पाकिस्तानी, पाक अधिकृत कश्मीर (POK) और अफगान कैदियों की रिहाई करवाई, जिनमें से कुछ दशकों से बंद थे। 

कानूनी सहायता की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके भीम सिंह को भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीएन सिंह “सत्य और न्याय का योद्धा” कहते थे।

नवाज़ शरीफ़ का केस लड़ने के लिए मांगा था वीज़ा 

डॉ भीम सिंह ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ का केस पाकिस्तानी अदालत में लड़ने के लिए पाकिस्तान विदेश मंत्रलाय से वीज़ा की मांग की थी। उनका कहना था कि “हमने कानून का अध्ययन किया है क्योंकि हम उन लोगों की मदद करना चाहते हैं, जो असहाय हैं और सत्ता में बैठे लोगों द्वारा परेशान किए जा रहे हैं।” हालाँकि इसी मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद नवाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।

इससे पहले डॉ भीम सिंह ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री श्री जुल्फिकार अली भुट्टो, इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति स्लोबोदान मिलोसेविच का केस लड़ने की भी पेशकश की थी। हालांकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने डॉ भीम सिंह को राष्ट्रपति स्लोबोदान मिलोसेविच का मामला लड़ने की इजाजत नहीं दी थी।

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