सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी ने बिलकिस बानो मामले 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर होने वाली सुनवाई से खुद को अलग कर लिया हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा है कि हम मामलें पर फरवरी के मध्य में सुनवाई करेंगे और सभी वकील सुनवाई में कानूनी बिंदु पर अपनी दलीलें रखें. याचिका की योग्यता पर प्रतिवादी अपना पक्ष रखें. सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों के वकीलों को फटकार लगाते हुए कहा कि वह दस्तावेज के आदान प्रदान के बारे में बेंच के सामने चर्चा ना करें।
आपको बता दें, इस याचिका में बिलकिस बानो ने 2002 के गोधरा दंगो के दौरान सामुहिक दुष्कर्म और अपने परिवार के 7 सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती दी थी. पिछली तारीख पर भी यह केस जस्टिस रस्तोगी और बेला त्रिवेदी की बेंच में लगा था. जिसपर सुनवाई के दौरान जस्टिस रस्तोगी ने कहा था कि उनकी साथी जज मामले की सुनवाई नही करना चाहेंगी. कोर्ट ने आदेश दिया था कि मामले को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें, जिसमें हम में से कोई सदस्य नहीं है. पीठ ने न्यायमूर्ति त्रिवेदी के सुनवाई से अलग होने का कोई कारण नही बताया था।
15 अगस्त को दोषियों की रिहाई के लिए छूट देने के खिलाफ अपनी याचिका में, बानो ने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून की आवश्यकता को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए एक यांत्रिक आदेश पारित किया है. बानो ने कहा कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की आवश्यकता को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए एक यांत्रिक आदेश पारित किया है।
बानो की उम्र उस वक्त 21 साल थी और वह 5 माह की गर्भवती भी थी जब उनके साथ यह अमानवीय घटना घटित हुई थी. गुजरात के गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के दंगों से भागते समय उसके साथ सामुहिक दुष्कर्म किया गया था। मारे गए बानों के परिवार के 7 सदस्यों में उनकी 3 साल की बेटी भी शामिल थी। मामले की जांच CBI को सौंपी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था।
महाराष्ट्र की एक विशेष CBI अदालत ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट और बंबई हाईकोर्ट ने भी दोषियों की सजा बरकरार रखी. मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग 15 अगस्त 2022 को गोधरा उप-जेल से रिहा हुए थे. गुजरात सरकार ने राज्य की सजा माफी नीति के तहत इन दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी. 11 दोषियों ने जेल में 15 साल से ज्यादा की सजा पूरी कर ली थी.