जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की प्रैक्टिसिंग वकील सुप्रिया पंडिता ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बार काउंसिल की स्थापना के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के एडवोकेट्स के पास सरकार द्वारा स्थापित कोई स्टेट काउंसिल नहीं है जहां वे सदस्य बन सकें और भारत के अन्य राज्यों की तरह बार काउंसिल का लाभ ले सकें।
प्रॉक्सीमिटी कार्ड जारी करने की माँग
सुप्रिया पंडिता की याचिका के अनुसार स्टेट काउंसिल की अनुपलब्धता के कारण जम्मू कश्मीर और लद्धाख के एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के लिए प्रॉक्सीमिटी कार्ड हेतु आवेदन नहीं कर पाते हैं। पंडिता ने जम्मू और कश्मीर के एडवोकेट्स को प्रॉक्सीमिटी कार्ड जारी करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।
पंडिता ने अपने याचिका में कहा है कि “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में एडवोकेट्स जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की सदस्यता लेते हैं और उनकी सभी शिकायतों पर बार एसोसिएशन द्वारा सुनवाई की जाती है, लेकिन “दरबार मूव” की व्यवस्था के कारण एडवोकेट्स को विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण उनके लिए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में प्रैक्टिस करना मुश्किल हो जाता है”।
क्या है ‘दरबार मूव’
1872 से चली आ रही इस परम्परा में अक्तूबर और नवम्बर के बीच सर्दी के कारण पूरी राज्य सरकार, राजधानी, सचिवालय और हाईकोर्ट श्रीनगर से जम्मू शिफ़्ट होती है और फिर गर्मियों में वापस श्रीनगर लाया जाता है। सारी फ़ाइलें, कम्प्यूटर और फ़र्निचर लगभग 200 ट्रकों में भरकर भेजे जाते हैं। इस बेहद ही खर्चीले प्रक्रिया में ₹100 करोड़ खर्च होते हैं। मई 2020 में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने इस प्रक्रिया को ग़ैर ज़रूरी बताया था। हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य के चीफ़ सेक्रेटरी को इस पर फ़ैसला लेने का निर्देश दिया था।
भीम सिंह का योगदान
दिवंगत भीम सिंह ने जम्मू कश्मीर में बार की माँग को लेकर सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ एतिहासिक मुक़दमे में उन्होंने जीत दर्ज की थी। जिसके बाद 6 फरवरी, 2017 को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने शीर्ष न्यायालय के समक्ष जानकारी दी थी कि उसने जम्मू-कश्मीर राज्य बार काउंसिल नियमों को मंजूरी दे दी है, लेकिन सुप्रिया पंडिता ने जानकारी दी कि बीसीआई ने इसे लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है।