सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत या ये भी कहा जा सकता हैं कि सभी राजनैतिक पार्टी बच गई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अभिव्यक्ति की आजदी के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान सभी को बोलने की आज़ादी देता हैं, कोई भी अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र हैं.इसलिए अगर कोई भी सरकारी अधिकारी, नेता या मंत्री कुछ ऐसा कहता हैं, जो मान्य नहीं है तो उसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं होगी. उसके लिए वहीं जिम्मेदार होगा जिसने वो बयान दिया हैं।
दरअसल,सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कि गई थी कि जो व्यक्ति सार्वजनिक पदों पर हैं उनके द्वारा किसी भी तरह के गै़र जिम्मेदारी भरे बयानों पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए.इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच की अगुआई जस्टिस एसए नजीर द्वारा की गई.इसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल रहीं।सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा हैं कि व्यक्ति की अभिव्यक्ति पर पांबदी नहीं लगाई जा सकती हैं. उन्हें ऐसे बयान ने से स्वंय ही बचना होगा।
इस मामले पर फैसला सुना रही पाँच सदस्यीय संविधान पीठ की एक जज बीवी नागरत्ना ने ये ज़रूर कहा कि अगर कोई मंत्री या नेता अपमानजनक बयान देता है, तो इस बयान के लिए उसकी पार्टी को ज़िम्मेदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए? हालाँकि यह बात उस मामले पर निर्भर करती है की कौन से बयान के लिए सरकार ज़िम्मेदार हो सकती है और कौन से बयान के लिए नहीं, यह उस वक्त ही तय हो सकता है।

आजकल देखा जा सकता हैं, नेता अपनी पार्टी के आलाकमान को खुश करने और पार्टी की तरीफ करने के लिए कई बार गलत बयानबाजी कर जाते हैं.अगर वह बयान गैर जिम्मेदाराना होता हैं तो वह पार्टी यह कह कर उस बयान से अपनी पार्टी को अलग कर लेती हैं कि वह उस व्यक्ति का व्यक्तिगत हैं.इसका पार्टी से कोई लेना देना नही हैं. लेकिन इस बयान के बाद भी बयान देने वाले के खिलाफ कोई कार्यवाही पार्टी के द्वारा नहीं कि जाती हैं.राजनीति में बयान के लिए कोई भी सीमा निर्धारित नहीं हैं.
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी मानकार पाबंदी लगाने से मना कर दिया है. लेकिन यह कहा हैं कि इस तरह की बयानबाज़ी से सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को बचना चाहिए क्योंकि उन्हें सुनने वाले ज्यादा लोग होते हैं.