बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने संकेत दिया कि वह 30 सितंबर के बाद अटार्नी जनरल के पद पर नहीं रहेंगे। एजी ने यह संकेत उस समय दिया जब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर विवाद से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को मामले को सूचीबद्ध करने की मांग की ताकि भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष कार्यवाही समाप्त हो सके। जस्टिस चंद्रचूड़ ने पीठ के समक्ष पेश हुए वकील को कहा कि, “यदि इस मामले में सीजेआई की अदालत में सुनवाई नहीं हो पाती है तो यह मामला 11 अक्टूबर को सूचीबद्ध किया जाएगा।”
जिसपर एजी वेणुगोपाल ने कहा बताया कि वह 30 सितंबर तक ही एजी के रूप में अपनी सेवाएँ दे सकते हैं। एजी के बयान पर जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि “आपने मई में अनुच्छेद 142 की शक्ति को कम करके आंका,” जस्टिस चंद्रचूड द्वारा अनुच्छेद 142 की शक्ति के प्रयोग करने के संकेत देने का यह भी अर्थ है कि वह सुप्रीम कोर्ट में वेणुगोपाल को एजी के रूप में बने रहने के लिए कह सकते हैं, भले ही केंद्र सरकार उनके कार्यकाल का विस्तार न करे।
दरअसल अनुच्छेद 142 में सुप्रीम कोर्ट को विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त है। इसके इस्तेमाल से सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो।
इस साल जून के अंत में, एजी वेणुगोपाल का कार्यकाल तीन महीने तक के लिए बढ़ा दिया गया था। 30 सितम्बर को अटॉर्नी जनरल के रूप में उनकी सेवाएं समाप्त हो जाएँगी। वेणुगोपाल को 1 जुलाई, 2017 को तीन साल के लिए अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था, जिसे एक साल के लिए दो बार बढ़ाया गया।
पिछले छह दशकों से वकालत कर रहे केके वेणुगोपाल को पूर्व CJI एनवी रमना ने अपने फ़ेयरवेल स्पीच में भारतीय वकालत का भीष्म पितामह कहा था। जनवरी 1954 में मैसूर हाईकोर्ट से वकालत की शुरुआत करने के बाद उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष बार में दाखिला लिया और अपने पिता एमके नांबियार के अधीन प्रैक्टिस शुरू की।
करियर के शुरुआत दिनों में उन्होंने मोटर वाहन परमिट, अंतर-राज्यीय परमिट और मार्गों की भिन्नता से संबंधित मामलों में मुकदमेबाजी की। बाद में उन्होंने संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ के रूप में अपनी पहचान स्थापित किया। मद्रास हाईकोर्ट में 25 साल प्रैक्टिस करने के बाद वो दिल्ली आए। 1972 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया। 70 के दशक के अंत में मोरारजी देसाई सरकार के लिए उन्होंने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी कार्य किया।