ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की ज़मानत याचिका हुई ख़ारिज, कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा

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ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की ज़मानत याचिका को दिल्ली की अदालत ने शनिवार को ख़ारिज कर दिया। 2018 में एक हिंदू देवता के खिलाफ ‘आपत्तिजनक ट्वीट’ करने के मामले में कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा है।

चार दिन की पुलिस रिमांड खत्म होने के बाद आज शनिवार को ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मेजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया की अदालत में पेश किया था।

ज़ुबैर पर शुरू में आईपीसी की धारा 153 ए (धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 295 (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने पाकिस्तान, सीरिया और ऑस्ट्रेलिया से फ़ंडिंग लेने, सबूत नष्ट करने और आपराधिक साज़िश रचने के आरोप में भी मुक़दमा दर्ज किया है।

ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान मोहम्मद जुबैर के ट्वीट पर एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कहा, “ज़ुबैर द्वारा किया गया ट्वीट 1983 में आयी ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘किसी से ना कहना’ का था, यह एक कॉमेडी सीन है और सेंसर बोर्ड ने इसे अनुमति भी दी थी।” उन्होंने ने दलील दी कि अगर ट्वीट भड़काऊ और संवेदनशील है, तो अभी भी इसे हटाने के लिए ट्विटर की ओर से कोई निर्देश नहीं आया है”।

वृंदा ग्रोवर के जवाब में दिल्ली पुलिस के एडवोकेट अतुल श्रीवस्ताव ने कहा कि वह ट्वीट अभी भी सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर मौजूद है, ट्वीट होने के 4 साल बाद भी डिलीट नहीं किया गया है इसलिए यह एक निरंतर अपराध की श्रेणी में आता है। उन्होंने ने कहा कि जब फिल्म रिलीज हुई थी, तब इंटरनेट का युग नहीं था।

एडवोकेट अतुल श्रीवास्तव ने विदेशों से मिले चंदा का मुद्दा उठाकर कोर्ट से जमानत याचिका को खारिज करने की मांग की। उन्होंने ने कहा कि अभियुक्त को पाकिस्तान और सीरिया जैसे देशों से चंदा मिला है, इसलिए अब यह मामला “सिर्फ एक साधारण ट्वीट का नहीं है”।

दिल्ली पुलिस ने ज़ुबैर के ख़िलाफ़ आईपीसी की तीन नई धाराएं जोड़ी हैं। जिसमें विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 की धारा 35,  धारा  201 (सबूत नष्ट करने के लिए) और धारा 120- (बी) (आपराधिक साजिश के लिए) है।

दिल्ली पुलिस ने जमानत अर्जी खारिज करने को लेकर दलील दी कि आरोपी प्रावदा मीडिया के निदेशक हैं और उन्होंने चालाकी से अपने फ़ोन से सब कुछ हटा दिया है। प्राथमिकी के बाद फोन से डेटा हटाना एक गम्भीर मामला है।” 

फोन फ़ॉर्मैट करने के आरोप पर एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि उन्हें एफआईआर दर्ज होने की जानकारी नहीं थी और न ही पुलिस ने फोन को समन किया था। यह हथियार, गोला-बारूद या ड्रग नहीं है और ना ही फोन को फॉर्मेट करना अवैध है।

सुबह दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद मुख्य मेट्रोपॉलिटन मेजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया ने फ़ैसला सुरक्षति रख लिया। फिर थोड़े समय बाद उन्होंने ज़मानत याचिका रद्द कर न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश सुनाया।

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