सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर परिसीमन मामले पर सुनवाई गुरूवार को जारी रहेगी

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जम्मु-कश्मीर परिसीमन मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, याचिका में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग के गठन को लेकर सरकार के फैसले को सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है। इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें दी गई.इस मामलें पर आज कोर्ट में क्या हुआ पढिए इस रिपोर्ट में—

वरिष्ठ वकील रविशंकर जंध्याला ने कहा कि पहले कि मैं अपनी दलीलें पढ़ता हूं, मैं मामले के पूरे पहलू की व्याख्या करूंगा।पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह इस मामले में कुछ और दस्तावेज दाखिल करना चाहती है। इस पर कोर्ट ने सरकार को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की इजाजत दे दी थी।याचिका में केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है।

जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा कि क्या जम्मू-कश्मीर के लिए लोकसभा की सीटें बढ़ा दी गई हैं। 453 लोकसभा सीट है। वह एक विशेष वितरण है। वितरण यह है कि यदि परिवार नियोजन कार्यक्रम होता है, तो परिवार नियोजन पर कड़ी मेहनत करने वाले राज्यों को लाभ होगा।

जस्टिस संजय किशन कौल ने आगे कहा कि जब आप जनसंख्या नियंत्रण के बारे में बात करते हैं तो यह जम्मू-कश्मीर में लोकसभा सीटों को बदलने में किस तरह से प्रभावित करता है?

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा परिसीमान पर 2026 तक रोक लगी हुई थी, केंद्र शासित प्रदेश में कुल 106 सीटें थी, जम्मू में 43 और कश्मीर में 43 सीटें थी। बाकी लद्दाख में है। याचिकाकर्ता के वकील ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 170 को पढ़ा, जो विधानसभाओं की संरचना पर विचार करता है।जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि आप अधिसूचनाओं को चुनौती दे रहे हैं, लेकिन वैधानिक प्रावधान को चुनौती नहीं दे रहे हैं?

आपने किसी चीज को असंवैधानिक करार देकर रद्द करने के लिए कोई प्रार्थना नहीं की है। आपके अनुसार, यदि मैं ऐसा कहूँ तो आक्षेपित अधिसूचनाएँ वैधानिक प्रावधानों के खिलाफ नहीं हैं। जस्टिस एएस ओका ने कहा कि अगर धारा 62 पर कायम है, तो आप पूरी प्रक्रिया में गलती कैसे ढूंढते हैं?

जस्टिस ओका ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा आपने प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दी है। आपकी याचिका इस बात को चुनौती देने तक सीमित है, कि सूचनाएं वैधानिक प्रावधान का उल्लंघन कर रही हैं। तो, हमें इस आधार पर आगे बढ़ना होगा कि प्रावधान वैध हैं।यचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वे संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं। हमने परिसीमन आयोग के गठन को चुनौती दी है।

याचिकाकर्ता के वकील ने बेंच से कहा कि आप केंद्र सरकार का जवाबी हलफनामा देखें।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिसीमन आयोग का गठन पुनर्गठन कानून की धारा 62(2) के तहत की गई है। ऐसे में आयोग का गठन करने की शक्ति केंद्र के पास है।जस्टिस ओका ने कहा कि आपकी याचिका अगर इसी आधार पर है तो आपकी याचिका का कोई आधार नहीं है। कि अब हमें बताएं कि क्या केंद्र सरकार परिसीमन अधिनियम के तहत परिसीमन आयोग का गठन करने के लिए शक्तिहीन थी।याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस पर मेरा निवेदन है कि परिसीमन आयोग को 2007 में समाप्त कर दिया गया था और परिसीमन आदेश 2008 में पारित किया गया था।

जस्टिस ओका ने कहा कि आप कह रहे हैं कि सरकार के पास आयोग के गठन की शक्ति नहीं थी। पहले यह देखें कि धारा 62(2) में परिसीमन आयोग के माध्यम से निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन का प्रावधान है। इस प्रावधान के तहत आयोग का गठन किया गया था। कृपया इसे पढ़ें। आपने अधिनियम की वैधानिकता को चुनौती नहीं दी तो अधिसूचना को कैसे चुनौती दे रहे हैं।

याचिकाकर्ता के वकील जंध्याला ने कहा कि 2008 के बाद कोई परिसीमन आयोग नहीं है, केवल चुनाव आयोग है।जस्टिस ओका ने कहा लेकिन, धारा 62(2) में परिसीमन आयोग का प्रावधान है।जंध्याला ने कहा मैं उसी को चुनौती दे रहा हूं।

जवाब में जस्टिस ओका ने कहा लेकिन वैधानिक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका में ऐसी कोई मांग नहीं है। आप चुनौती दे रहे हैं कि परिसीमन आयोग का गठन नहीं किया जा सकता था। लेकिन आपने परिसीमन आयोग के गठन की बात करने वाली धारा 62(2) को चुनौती नहीं दी है।

जंध्याला: यह चुनाव आयोग है न कि परिसीमन आयोग। मैं अधिनियम से दिखाऊंगा

जस्टिस ओका ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि हम आपके खिलाफ नहीं है। बस इस आधार को जानना चाहते हैं कि जब आपने अधिनियम की धारा 62(2) को चुनौती नहीं दी, तो आयोग के गठन की अधिसूचना को किस आधार पर चुनौती दी है।

जस्टिस ओका ने कहा कि हम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि आप जो तर्क दे रहे हैं, वह आपकी याचिका में नहीं है। आपकी मूल चुनौती क़ानून के विभिन्न प्रावधानों के ख़िलाफ़ प्रतीत होती है, लेकिन आपकी याचिका इस बारे में बिल्कुल चुप है। जस्टिस ओका ने कहा कि आप 2004 के दिशानिर्देश की बात कर रहे हैं। अधिनियम को लेकर नहीं कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर परिसीमन मामले पर लंच के बाद सुनवाई शुरू।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क देना शुरू किया और कहा कि संविधान कि भावना को खत्म किया गया है सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करके। क्योंकि चुनाव आयोग ही सक्षम प्राधिकार है।

याचिकाकर्ता के वकील जंध्याला ने कहा कि मैंने सीटों की बढ़ोतरी को चुनौती दी है। उन्होंने एक फैसले का उल्लेख किया है, जो यह प्रमाणित करता है कि वैधानिक प्रावधान संविधान को रद्द नहीं कर सकते।

जस्टिस‌ ओका ने कहा कि आपको जो बताया जा रहा है वह शायद आपको समझ नहीं आया। आपका पूरा तर्क यह है कि अधिनियम के प्रावधान संविधान का उल्लंघन करते हैं। लेकिन आपकी याचिका वैधानिक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती नहीं देती है। आप परिसीमन आयोग के गठन को यह कहते हुए चुनौती दे रहे हैं कि यह संविधान के विपरीत है। लेकिन आयोग का गठन अधिनियम के एक विशेष प्रावधान के तहत होता है, जिसे आपने याचिका में चुनौती नहीं दी है।

याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी जिरह पूरी की। अब एसजी तुषार मेहता गुरुवार को सरकार का पक्ष रखेंगे। गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर परिसीमन मामले पर सुनवाई जारी रहेगी।

Bhawna
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