सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर माना कि प्रशांत भूषण ने अदालत की अवमानना की ?

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विप्लव अवस्थी , संपादक

viplav Awasthi, editor Indian legal reporter

देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर Fair Criticism in public interest पर अपना रुख साफ किया है। देश की सर्वोच्च अदालत के तीन जजों अपने आदेश कहा कि वकील प्रशान्त भूषण के सोशल मीडिया प्लेटफार्म में लिखे गये दो ट्वीट से भारत के करोड़ो लोगों के मनमस्तिष्क में सुप्रीम कोर्ट के प्रति सम्मान और विश्वास पर गहरा आघात पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश यहां तक कहता है कि अगर देश की सर्वोच्च अदालत कोई कार्यवाही नहीं करती है तो देश की निचली अदालतों में बैठे जजों पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशान्त भूषण का अवमानना का दोषी पाया और 20 अगस्त के लिए सजा पर फैसला सुनाने की तरीख तय की।

22 जुलाई को स्वत:संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशान्त भूषण के दो ट्वीट से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की प्रक्रिया शुरु कर दी। जिस पर तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने अपना फैसला सुनाते हुए वकील प्रशान्त भूषण को सुप्रीम कोर्ट की आपराधिक अवमानना का दोषी करार दिया। आईये सबसे पहले जान लेते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशान्त भूषण के दोनों ट्वीट पर अपने आदेश में आखिर कहा क्या…

पहला ट्वीट- सुप्रीम कोर्ट का आदेश:

पहले ट्वीट के प्रथम भाग जिसमें प्रशान्त भूषण ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “ भारत के मुख्य न्यायाधीश नागपुर के राजभवन में बीजेपी नेता की 50 लाख की बाइक की सवारी बिना हेलमेट और मास्क लगाकर कर रहे हैं” ये मुख्य न्यायाधीश पर की गयी व्यक्तिगत टिप्पणी है, ये टिप्पणी उनके पद और पद के कार्य से जुड़ी टिप्पणी नहीं है, जबकि पहले ट्वीट के दूसरे भाग में जिसमें प्रशान्त भूषण ने कहा कि वो ये राइड मुख्य न्यायाधीश उस वक्त कर रहे हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन की स्थिति में रखा गया है और लोगों को उनके मौलिक आधिकारों से जुड़ा हुए न्याय नहीं मिल रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने ट्वीट के इस भाग को पूरी तरह से गलत, भ्रमित और अपमानजनक माना है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये टिप्पणी केवल मुख्य न्यायाधीश पर व्यक्तिगत टिप्पणी न होकर मुख्य न्यायाधीश के पद पर बैठे हुए व्यक्ति पर की गयी टिप्पणी है जो कि भारत की न्यायिक व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए शख्स भी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशान्त भूषण जिस वक्त का जिक्र कर रहे हैं उस समय कोर्ट गर्मियों की छुट्टियों के लिए बंद थी जबकि ग्रीसकालीन बैंचों का संचालन लगातार हो रहा था। भारत में फैले कोविड-१९ के प्रभाव के चलते बैंच वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से हर उस मामले की सुनवाई कर रही थीं जिसकी सुनवाई अतिआवश्यक थी। 23 मार्च से 4 अगस्त के बीच में 879 सिटिंग हुई जिनमें 12748 मामलों की सुनवाई की गयी, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 686 रिट याचिकाओं को भी सुना। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि इसी दौरान प्रशान्त भूषण भी एक मामले में पेश हुए जिसमें कोर्ट ने दर्ज एफआईआर पर स्टे लगाया।

इस आधार पर प्रशान्त भूषण का आरोप गलत है कि लोगों को लॉकडाउन के दौरान उनके अधिकारों से वंचित रखा गया।

दूसरा ट्वीट- सुप्रीम कोर्ट का आदेश –

सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशान्त भूषण के ट्वीट को तीन भागों में बांटा, पहला जिसमें कहा गया कि पिछले 6 सालों में भारत में लोकतंत्र को नष्ट किया गया। दूसरा भाग जिसमें कहा गया कि लोकतंत्र को खत्म करने में सुप्रीम कोर्ट ने भूमिका अपनाई।

तीसरा भाग जिसमें कहा गया कि इस लोकतंत्र को खत्म करने में पूर्व 4 मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि सबसे पहले तो हम पहले भाग पर बहस करने का कोई औचित्य नहीं रखते क्योंकि इसका सुप्रीम कोर्ट से सीधा कोई लेना देना नहीं, लेकिन जहां तक ट्वीट के दूसरे भाग और तीसरे भाग का सवाल है ये आरोप केवल किसी सुप्रीम कोर्ट जज पर नहीं बल्कि पूरे सुप्रीम कोर्ट और उसके पूर्व न्यायाधीशों पर है जिन पर सीधा आरोप लगाया गया कि 6 वर्षों में जब लोकतंत्र समाप्त हो रहा था तो वो उसके भागीदार थे। अगर हम इस ट्वीट को साफ आलोचना की दृष्टिकोण से देखें तो ये ट्वीट ऐसे शख्स की तरफ से लिखा गया जो कि खुद 30 साल से सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे हैं और इसी अदालत से जनता के हित के विभिन्न आदेश भी लिये हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि ये ट्वीट प्रकाशित होने के साथ ही करोड़ो लोगों तक गया, जिसने उनके बीच सुप्रीम कोर्ट की न्यायपालिक पर विश्वास खत्म करने की कोशिश की है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान को ऐसा पिलर है जिस पर कानून लागू करने की सभी जिम्मेदारियां हैं। इसलिए इस ट्वीट ने न केवल सुप्रीम कोर्ट बल्कि उनके मुख्य न्यायाधीशों की विश्वसनीयता, प्रभाव और अधिकारिता पर भी सवाल उठाया है।

शीर्ष अदालत ने अपने 108 पेज के आदेश में ट्विटर इंक, कैलिफोर्निया, अमेरिका को अवमानना मामले में उनका स्पष्टीकरण स्वीकार करने के बाद आरोप मुक्त कर दिया। ट्विटर इंक ने अपनी सफाई में कहा था कि वह तो सिर्फ एक मध्यस्थ था और उसका इस पर कोई नियंत्रण नहीं है कि इसका इस्तेमाल करने वाला इस प्टेलफार्म पर क्या पोस्ट करता है।

पीठ ने कहा कि कंपनी ने न्यायालय द्वारा इस घटना का संज्ञान लिये जाने के बाद तत्काल अपनी सदाश्यता दिखाई और उसने दोनों ट्विट निलंबित कर दिये थे। पीठ ने कहा, ‘‘हम, इसलिए, कथित अवमाननाकर्ता ट्विटर इंक को नोटिस से मुक्त करते हैं।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि वह 20 अगस्त को इस मामले में प्रशांत भूषण को दी जाने वाली सजा की मात्रा पर बहस सुनेगी।

पीठ ने सुनवाई पूरी करते हुए 22 जुलाई के आदेश को वापस लेने के लिए अलग से दायर आवेदन खारिज कर दिया था। इसी आदेश के तहत न्यायपालिका की कथित रूप से अवमानना करने वाले दो ट्वीट पर अवमानना कार्यवाही शुरू करते हुए नोटिस जारी किया गया था।

पीठ सुनवाई के दौरान भूषण का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे के इस तर्क से सहमत नहीं थी कि अलग आवेदन में उस तरीके पर आपत्ति जताई है, जिसमें अवमानना प्रक्रिया अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की राय लिए बिना शुरू की गई और उसे दूसरी पीठ के पास भेजा जाए। अवमानना कानून के अंतर्गत दोषी ठहराये जाने के बाद कानूनी प्रावधान के मुताबिक 6 महीने की जेल अथवा 2 हजार रुपया जुर्माने की व्यस्था है। हांलाकि प्रशान्त भूषण के पास अभी भी रिव्यू और क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने का अधिकार बाकी है।

Khurram Nizami
Khurram Nizami