ओबीसी की जाति आधारित जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट करेगा जल्द सुनवाई, पिछले साल ही केन्द्र सरकार ने 2021 की प्रस्तावित जनगणना में ओबीसी की गणना कराने से किया था इंकार

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याचिका में कहा गया है कि ये कहना गलत होगा कि जाति को सामाजिक व्यवस्था से खत्म किया जा सकता है और सामाजिक समरसता तभी आयेगी जब हम जाति की गणना न करें। वास्तव में, हमें इस तथ्य के साथ आना चाहिए कि जाति अपनी प्रकृति से असामाजिक है ( जैसा कि डॉ अम्बेडकर ने ठीक ही सुझाव दिया है), और कोई भी सामाजिक सामंजस्य इसके भवनों को नष्ट किए बना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। हम कब तक इच्छापूर्ण सोच के साथ रहना चाहते हैं कि अगर हम इसे नहीं गिनेंगे या सार्वजनिक रुप से इस पर चर्चा नहीं करेंगे तो जाति गायब हो जाएगी? 

दिल्ली- साल 2021 में प्रस्तावित जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे याचिकाकर्ता और वकील के के पाल ने सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल याचिका दाखिल करते हुए कहा है कि ओबीसी में जाति आधारित जनगणना करना परम आवश्यक है। हालांकि केन्द्र सरकार ने संसद में ओबीसी जनगणना के सवाल पर साफ कहा था कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के अलावा किसी भी वर्ग में जाति जनगणना नहीं की जाएगी। 

नहीं गिनने से जाति गायब नहीं होगी- याचिकाकर्ता

याचिका में कहा गया है कि ये कहना गलत होगा कि जाति को सामाजिक व्यवस्था से खत्म किया जा सकता है और सामाजिक समरसता तभी आयेगी जब हम जाति की गणना न करें। वास्तव में, हमें इस तथ्य के साथ आना चाहिए कि जाति अपनी प्रकृति से असामाजिक है ( जैसा कि डॉ अम्बेडकर ने ठीक ही सुझाव दिया है), और कोई भी सामाजिक सामंजस्य इसके भवनों को नष्ट किए बना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। हम कब तक इच्छापूर्ण सोच के साथ रहना चाहते हैं कि अगर हम इसे नहीं गिनेंगे या सार्वजनिक रुप से इस पर चर्चा नहीं करेंगे तो जाति गायब हो जाएगी? 

क्यों जरुरी है जाति गणना?

याचिका में कहा गया है कि भारत में केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें पिछड़े वर्गों के सामाजिक-राजनीतिक आर्थिक विकास के लिए शिक्षा और रोजगार, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भागीदारी जैसी कई योजनाऐं शुरु और कार्यान्वित कर रही हैं। याचिका में आगे कहा गया है कि ऐसी योजनाओं के लिए, केन्द्र और राज्य सरकारें बजट आवंटित कर रही हैं, लेकिन जाति आधारित सर्वेक्षण की कमी के चलते पिछड़े वर्गों के सबी वर्गों के साथ लाभ साझा करने में सरकारें असमर्थ हैं। याचिका में कहा गया है कि उपरोक्त बातों को देखते हुए पिछड़े वर्गों की जाति आधारित गणना और भी आवश्यक हो गयी है ताकि शिक्षा और रोजगार क्षेत्रों, पंचायती राज और नगरपालिका चुनावों में आरक्षण संख्या के आधार पर लागू किया जा सके। 
 ठोस आंकड़ों के बिना ठोस नीतियां संभव नहीं

याचिका में कहा गया है कि, “ठोस आंकड़ों के अभाव में ठोस नीतियां नहीं बनाई जा सकतीं। यदि राष्ट्र की संपत्ति को जाति के आधार पर विभाजित किया जाता है, तो हमें विभिन्न जाति समूहों की जनसंख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में सटीक डेटा की आवश्यकता होती है, तभी हम इन मुद्दों को संबोधित करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं जो हमारे देश के समग्र और समग्र विकास के लिए आवश्यक हैं। 

ओबीसी गणना पर राजैतिक बयानबाजी अलग-अलग

याचिका में दावा है कि वर्तमान राजनीति ने इस मुद्दे पर भ्रामक संकेत भेजे हैं, याचिका में कहा गया है कि संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पिछले साल कहा था कि सरकार ने जाति की गणना नहीं करने का फैसला, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के मामले को छोड़कर, किया है जबकि बीजेपी के नेशनल जनरल सेक्रेट्री दुष्यंत गौतम के एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू के हवाले से कहा गया है कि बीजेपी ओबीसी जाति गणना कराने का विचार रखती है। 

Khurram Nizami
Khurram Nizami

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