गुजरात हाईकोर्ट ने ये कहते हुए जमानत दे दी थी कि दोनों पक्षों, जिसमें आरोपी और मृतक का बेटा शामिल है, के बीच समझौता हो गया है, इसलिए नियमित जमानत दी जा सकती है। हांलाकि जमानत देने के साथ हाईकोर्ट ने आरोपी पर कई शर्तें भी लगाई थी।

दिल्ली- क्या हत्या के आरोपी को इस आधार पर जमानत दी जा सकती है कि मृतक के परिजन और आरोपी के बीच किसी भी तरह का समझौता हो गया है? इस प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर विचार करेगा जिसमें गुजरात हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी को नियमित जमानत दे दी थी। हाईकोर्ट के फैसले को हत्या के मामले में चश्मदीद गवाह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर हैरानी जताते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है।
गुजरात हाईकोर्ट ने दी थी जमानत
गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ के न्यायाधीश ए वाई कोगजे की कोर्ट में पेश मामले में बताया गया कि हत्या के आरोपी, मृतक के खेत में बैठे हुए थे। मृतक और आरोपियों के बीच किसी मामले को लेकर झड़प हो गयी। जिस पर आरोपी ने रिवाल्वर निकाल कर पीड़ित पर गोली चला दी, साथ ही पीड़ित पर तलवार से हमला भी किया गया। गांधीनगर पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की धारा 302 और 114, आर्म्स एक्ट की धारा 30 और गुजरात पुलिस एक्ट की धारा 135 के तहत मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने आरोपियों की गिरफ्तारी की। निचली अदालत से जमानत रद्द होने के बाद एक आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया। गुजरात हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी।
जमानत का आधार
गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद कहा क्योंकि इस मामले में पुलिस ने जांच पूरी कर आरोपपत्र दाखिल कर दिया है, साथ ही एक समझौता पत्र भी हाईकोर्ट के सामने दाखिल किया गया है जिसमें आरोपी और मृतक के बेटे के बीच हुए समझौते में मामला खत्म करने को कहा गया है, इसलिए आरोपी को नियमित जमानत दी जा सकती है। हालांकि हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए आरोपी पर विभिन्न तरीके की शर्ते भी लगाई हैं।
गवाह पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट के समझौते के आधार पर जमानत देने के आदेश को असाधारण और अनसुना बताते हुए हत्या के एक चश्मदीद ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया कि कैसे हत्या के आरोपी को एक समझौते के आधार पर जमानत दी जा सकती है। याचिका में कहा गया है कि हत्या जैसे संगीन आरोप में दर्ज केस में समझौता करने का कोई कानूनी विकल्प नहीं होता है फिर भी गुजरात हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।