याचिका में आरोप लगाया गया है कि ईडी डायरेक्टर को हर साल अपनी चल और अचल सम्पति को ब्यौरा सरकार को देना होता है, लेकिन मौजूदा डायरेक्टर ने 2018, 2019 और 2020 में सरकार को ब्यौरा नहीं जमा किया। इस लापरवाही को अनदेखा करते हुए सरकार ने मौजूदा डॉयरेक्टर की पदावधि को 1 साल के लिए बढ़ा दिया।

दिल्ली- आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए केन्द्र सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें मौजूद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के डायरेक्टर एस के मिश्रा की पदावधि को 1 साल के लिए बढ़ा दिया है। याचिकाकर्ता ने केन्द्र सरकार के वित्त मंत्रालय के 17-11-2021 के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें वर्तमान डायरेक्टर एस के मिश्रा के रिटायर्रमेंट से पहले ही उन्हें 1 और साल की अवधि के लिए ईडी डायरेक्टर के पद पर बने रहने का निर्देश जारी किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लघंन
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि ईडी डायरेक्टर के रिटार्यरमेंट के बाद उसे पदावधि बढ़ाने की इजाजत नहीं होगी। याचिका में साफ कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने कॉमन कॉज बनाम केन्द्र सरकार, 2020 के फैसले में अवकाश प्राप्त होने जा रहे डायरेक्टर की पदावधि बढ़ाने के केन्द्र सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी।
डायरेक्टर ने सम्पति को विवरण नहीं दिया
याचिका में कहा गया है कि सिविल सेवा नियमों, सीवीसी और सीबीडीटी के नियमों के अनुसार हर सिविल सेवक को प्रत्येक वर्ष अपनी चल और अचल संपत्ति को ब्यौरा सरकार को देना पड़ता है। लेकिन वर्तमान डायरेक्ट एस के मिश्रा ने 2018, 2019, 2020 के अपने अचल संपत्ति के ब्यौरा नहीं भरा। याचिकाकर्ता का ये भी दावा है कि वित्त मंत्रालय के आदेश दिनांक 17-11-2021 के बाद अचानक दिसम्बर 2021 में अचल संपत्ति का ब्यौरा बेवसाइट पर दिखने लगा, हालांकि इससे पहले ही सेन्ट्रल विजिलेंस कमीशन में इसी शिकायत दर्ज करायी जा चुकी थी।
लापरवाह अधिकारी को पदावधि देने से गलत संदेश जाएगा
याचिका में कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने जिस अधिकार के लिए दो बार पदावधि बढ़ाया है वो लापरवाह अधिकारी है। इस तरह के अधिकारी को पदावधि देने से समाज में गलत संदेश जाता है साथ ही प्रर्वतन निदेशालय जैसी संस्था पर सवाल खड़े होते हैं। याचिका में कहा गया है कि केन्द्र सरकार के इस तरह के निर्णय ये एक समझ बनती है कि प्रर्वतन निदेशालय जैसे विभाग के उच्च अधिकारी की नियुक्ति में राजनैतिक प्रभाव काम करता है, इस तरह का संदेश विभाग की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिंह लगाता है।