“चीफ जस्टिस खुद में सुप्रीम कोर्ट नहीं” ,वरिष्ठ वकीलों ने प्रशान्त भूषण मामले में उठाये सवाल !

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सुप्रीम कोर्ट में पिछले तीन दशक से वकालत करने वाले वकील प्रशान्त भूषण को आपराधिक अवमानना का सुप्रीम कोर्ट ने ही दोषी माना है। वकील प्रशान्त भूषण के अपने ट्विटर एकाउंट में किए गये दो ट्वीट जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और 4 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का जिक्र था, सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बैंच ने सुनवाई के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशान्त भूषण को सजा सुनाने के लिए 20 अगस्त की तारीख तय की है। 108 पेज के विस्तृत फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले सीनियर वकीलों ने अपनी राय रखी। जानिए क्या कहते हैं सीनियर वकील

आलोचना के पीछे की मंशा समझना जरुरी : सीनियर एडवोकेट संजय पारिख

“वकील प्रशान्त भूषण ने सुप्रीम कोर्ट समेत कई अदालतों में मानवाधिकार और भ्रष्टाचार के कई सारे केस लड़े हैं। इन केसों को लड़ते समय जजों के सामने मामलों से संबंधित सोशल और आर्थिक मुद्दे जुड़े होते हैं और साथ ही कई बार ऐसे मामलों में राजनैतिक मसले भी जुड़े जाते हैं जिन पर जजों की अपनी राय भी होती है। आप जब इन बातों को देखते और समझते हैं कि उन मसलों पर सुनवाई करते हुए न्यायिक मापदंडों का ह्रास हो रहा है तब उन बातों को न्यायापालिका के सामने उठाया जाता है। इस तरह के मामलों को उठाते समय न्यायापालिक के साथ एक तरह का टकराव होता है। प्रतिक्रिया देते समय विभिन्न तरीके की बातें निकल जाती है जो कि न्यायपालिका के खिलाफ भी हो जाती हैं। कभी कभी शब्दों की मर्यादा भी टूट जाती है लेकिन इन सब बातों को होते भी ये ध्यान रखा जाता है कि न्यायपालिक के सामने की गयी कोई भी टिप्पणी के पीछे की मंशा और नियत क्या है। कभी कभी शब्दों की मर्यादा भी टूट जाती है।”

सीनियर एडवोकेट संजय पारिख के मुताबिक़ “जहां तक प्रशान्त भूषण का मामला है उन्होंने न्यायपालिका के सामने तमाम मुद्दे उठाये हैं जो कि जनहित के मामले थे। न केवल प्रशान्त भूषण ही नहीं अगर कोई भी शख्स जो लगातार जनहित के ऐसे मुद्दों को उठाता रहा हो और न्यायपालिका से जुड़े हुए कुछ कटोर अनुभवों को शेयर कर दे तो मुझे नहीं लगाता कि वो अदालत की अवमानना के अंतर्गत आना चाहिए।”

4 जजों ने भी सुप्रीम कोर्ट पर उठाये थे सवाल!

” चार सीनियर मोस्ट जजों ने सवाल उठाये थे कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीक नहीं चला रहा। इन जजों ने बकायदा प्रेस कांफ्रेस करके सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये थे। अब सवाल ये बनता है कि क्या चार जजों के उठाये गये मुद्दे अदालत की अवमानना कैसे नहीं होगी ? या आप उसे भी ईमानदारी से की गयी व्यवस्था पर टिप्पणी समझेंगे।”

सुप्रीम कोर्ट और जजों की आलोचना एक नहीं !

” सुप्रीम कोर्ट और उसके जज दोनों अलग-अलग बातें हैं। सुप्रीम कोर्ट की एक गरिमा है जो कि लोकतंत्र का बड़ा हिस्सा है। किसी को भी अगर सुप्रीम कोर्ट के बारे में बोलना हो तो किसी भी व्यक्ति को पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट और जज कभी कभी आपस में मिल जाते हैं। अगर आप जजों पर कोई टिप्पणी करते हो तो वो सुप्रीम कोर्ट से जोड़ दी जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट एक संस्था के तौर पर दिखाई नहीं देती लेकिन संस्था को उसके चलाने वालों से ही परखा जा सकता है। अगर जो जज सुप्रीम कोर्ट को चला रहे हैं और उनके फैसलों, आदेशों में कोई खामी नजर आती है और उन फैसलों, आदेशों की आलोचना सार्वजनिक होती है तो उसे पूरे संस्था यानि सुप्रीम कोर्ट से जोड़ दिया जाता है जबकि वो आलोचनाऐं केवल जजों की हैं। इसलिए जजों की आलोचना अवमानना नहीं हो सकती क्योंकि कोई न कोई तो न्यायिक प्रक्रिया में हो रही गलतियों को बतायेगा ही। “

सुप्रीम कोर्ट को Scandalize करना आसान नहीं ” – पूर्व एडवोकेट जनरल और सीनियर एडवोकेट अनूप जार्ज चौधरी

” केस की सुनवाई पर जल्दबाजी क्यों की गयी? “

“प्रशान्त भूषण के केस में आये आदेश के बाद पूर्व न्यायाधीश आर. एम. लोड़ा का बयान आया है कि आखिर इस केस को निपटाने की इतनी जल्दीबाजी क्यों की गयी? सवाल ये भी है कि जब सुप्रीम कोर्ट कोविड-19 के चलते वीडियोकांफ्रेसिंग के जरिए सु्नवाई कर रही हो उस वक्त बिना फीजिकल हीयरिंग के सुनकर फैसला देना उचित नहीं”

सुप्रीम कोर्ट को Scandalize करना आसान नहीं

“ प्रशान्त भूषण को दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने खुद को बदनाम करने का आरोप लगाया है। देश के एक बड़े संस्था को बदनाम करना इतना आसान नहीं है। बदनामी शब्द का बड़ा व्यापक मतलब है, केवल कुछ वाक्यों को कह देना या लिख देना सुप्रीम कोर्ट की बदनामी कैसे हो जाऐगी। अगर ऐसे वाक्यों और शब्दों को सुप्रीम कोर्ट अवमानना के दायरे में ले आयेगी तो सोशल मीडिया में लिखी हर बात पर अवमानना को रास्ता खुल जाऐगा। हांलाकि सुप्रीम कोर्ट इस तरह की बातों को नकारती रही है”

ट्वीट साक्ष्म अधिनियम के अन्तर्गत स्वीकार कार्य

“ सुप्रीम कोर्ट ने जिस ट्वीट के आधार पर प्रशान्त भूषण को दोषी करार दे दिया है वो खुद भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत स्वीकारयोग्य साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम में सेक्शन 65बी जोड़ा गया है, जिसका मतलब है कि इंटरनेट पर आयी कोई भी बात तब तक स्वीकारयोग्य साक्ष्य नहीं होता है जबतक कि वो 65बी की प्रक्रिया से न निकल जाऐ। जब कानून की इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो कोर्ट ने केवल ट्वीट के आधार पर कैसे फैसला कर दिया?

चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं

“संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार अवमानना पर सुप्रीम कोर्ट “ खुद” सजा दे सकती है। लेकिन यहां ये साफ करना जरुरी है कि चीफ जस्टिस का पद स्वंय में सुप्रीम कोर्ट नहीं है। मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे खुद में सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं। जब वो बाइक पर बैठे थे तब वो सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के पद पर नहीं बैठे थे। इसलिए ये कहना कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ कही गयी बात सुप्रीम कोर्ट के लिए कही गयी बात होगी, ये बात गलत है।

” अब गलतियों पर बोलने से बचेंगे वकील ” – सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े

“केवल दो ट्वीट करने के आधार पर वकील प्रशान्त भूषण को दोषी ठहराये जाने के कारण गलतियों पर बोलने से परहेज करने लगेंगे वकील और इसका परिणाम ये होगा कि अदालतों मजबूत नहीं हो पायेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह प्रशान्त भूषण को दोषी करार दिया है वो ईएमएस नंबूदरीपाद और अरुंधति रॉय के साथ शामिल होकर खड़े हो गये हैं। क्योंकि सर्वोच्च अदालत ने इन दोनों को भी अवमानना का दोषी ठहराया था। प्रशान्त भूषण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अवमानना की पाठ्यपुस्तकों में एक नये चैप्टर की तरह जुड़ जाऐगा, लेकिन ये उन पढ़ने वालों पर ये सवाला जरुर छोड़गा कि अदालत जनता की नजर में अपने अधिकार को बहान करने के लिए कुछ भी कर सकती है”