मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य की एक संस्था मध्य प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा (सभा) को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपने नियमों में बदलाव करने को कहा था, साथ ही हाईकोर्ट ने ये भी साफ कहा था कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सक्षम प्राधिकरण के अलावा किसी को भी मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार नहीं है।

दिल्ली- अक्सर हम प्रेमी जोड़े को आर्य समाज मंदिर में शादी करते सुनते हैं जिनके मां-बाप शादी के खिलाफ होते हैं। ये आर्य समाज विवाहित जोड़े को एक सर्टिफिकेट भी जारी करते हैं जिसके माध्यम से अदालतों में मैरिज रजिस्ट्रेशन भी हो जाता है। लेकिन अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल के साथ रोक लगा दी है कि आर्य समाज के तहत शादी करने के बाद उसके जारी किया हुआ शादी प्रमाण पत्र या मैरिज सर्टिफिकेट को कानूनी मान्यता प्राप्त है या नहीं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश की एक संस्था मध्य प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा को अपने नियमों में बदलाव करने का निर्देश जारी किया था। जिसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट इस बड़े सवाल पर सुनवाई करेगा कि क्या आर्य समाज में होने वाली शादी और उसके द्वारा जारी किया गया शादी प्रमाण पत्र कानूनी दस्तावेज होगा या नहीं।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का आदेश गलत
मध्य प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का आदेश विधायिका के बयान कानून में हस्तक्षेप करता है जिसमें विधायिका ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत आर्य विवाह विधिमान्यकरम अधिनियम, 1937 और हिन्दु विवाह अधिनियम के लिए किसी तरह की बाध्यता नहीं लगाई थी। वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि जहां दो लोग हिन्दु हैं और आपस में विवाह करना चाहते हैं वहां विशेष विवाह अधिनियम के तहत लागू नियम जैसे विवाह के लिए नोटिस देना, विवाह पंजिका में नोटिस के तत्थ प्रकाशित करना, विवाह पर कोई आपत्ति और उसके नियम आदि उन पर लागू नहीं होते हैं। जबकि इस तरह के विवाह के नियम खुद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश में आर्य समाज के तहत विवाह करने के मामले में लागू होने को हाईकोर्ट ने गलत बताया था। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हाईकोर्ट का ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लघंन है। कैसे किसी धर्म को अनुपालन करने वाले को उसकी धार्मिक कर्म-कांड से रोका जा सकता है।
हाईकोर्ट के सामने क्या था मामला?
साल 2013 में एक ल़ड़की जिसने आर्य समाज मंदिर में शादी की थी, उसने अपने पति से अपनी सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट में शरण ली और बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबियस कार्पस रिट) दाखिल की। हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए निर्देश जारी किया कि आर्य समाज में होने वाली शादियों की पूर्व अग्रिम सूचना माता-पिता घरवालों को दी जानी चाहिए, साथ ही इसकी सूचना लोकल पुलिस स्टेशन को भी दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में कहा कि शादी के समय पांच साथियों का मौजूद रहना जरुरी है। हाईकोर्ट ने अपनी सुनवाई में मध्य प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा को पार्टी नहीं बनाया था। सभा ने हाईकोर्ट में खुद को पार्टी बनाने की मांग की, साथ ही सभी आर्य समाज मंदिरों को हिन्दु विवाह अधिनियम के तहत गाइडलाइंस जारी की।
इसी बीच एक याचिका और दाखिल की गयी जिसमें आर्य समाज मदिरों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत बने नियमों को लागू करने की मांग की गयी। जिस पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डबल बैंच ने सभा को विशेष विवाह अधिनियम के तहत गाइलांइस लागू करने का निर्देश जारी किया। जिसके खिलाफ सभा ने सुप्रीम कोर्ट में शरण ली।