
नई दिल्ली, मई 2025: Land Acquisition के विवादों में उलझे किसानों के लिए सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ी राहत भरी खबर आई है। अदालत ने नोएडा प्राधिकरण को 10420 वर्गमीटर ज़मीन के अधिग्रहण के लिए किसानों को पूरा मुआवज़ा देने का स्पष्ट आदेश दिया है। यह फैसला न केवल प्रभावित किसानों के लिए एक जीत है, बल्कि भूमि अधिग्रहण कानूनों के पालन और न्याय की प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर भी बन गया है।
क्या था पूरा मामला?
नोएडा के सेक्टर 137 क्षेत्र में स्थित 10420 वर्गमीटर ज़मीन का अधिग्रहण नोएडा प्राधिकरण द्वारा किया गया था। किसानों का आरोप था कि न तो उन्हें अधिग्रहण की प्रक्रिया की पूरी जानकारी दी गई, और न ही उन्हें उचित मुआवज़ा प्रदान किया गया। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी किसानों के पक्ष में आदेश दिए थे, लेकिन प्राधिकरण ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच और आदेश
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी भी विकास परियोजना की आड़ में किसानों के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा:
“भूमि अधिग्रहण कानूनों का पालन केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक अधिकारों का सम्मान है। उचित मुआवज़ा किसानों का कानूनी और नैतिक अधिकार है।”
– जस्टिस संजीव खन्ना
अदालत ने नोएडा प्राधिकरण को यह आदेश दिया कि वह प्रभावित किसानों को तत्काल प्रभाव से ₹X करोड़ रुपये (सटीक राशि कोर्ट के आदेश में) का मुआवज़ा चुकाए, जिसमें ब्याज भी शामिल हो।
भूमि अधिग्रहण कानून और इसकी प्रासंगिकता
यह फैसला भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act) के तहत आया है, जो स्पष्ट रूप से बताता है कि:
- किसानों से ज़मीन लेने से पहले उनकी स्वीकृति और पारदर्शिता अनिवार्य है
- मुआवज़ा बाजार मूल्य से दोगुना या चार गुना होना चाहिए (ग्रामीण/शहरी भेद के आधार पर)
- पुनर्वास और पुनर्स्थापन योजनाएं लागू करनी चाहिए
इस फैसले का व्यापक असर
यह निर्णय विशेष रूप से नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण से जुड़े अन्य मामलों पर भी असर डालेगा। अब भविष्य में कोई प्राधिकरण मुआवज़ा चुकाए बिना विकास परियोजना शुरू नहीं कर सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि सरकारी एजेंसियां किसानों को गुमराह करके भूमि अधिग्रहण करती हैं, तो यह न केवल अवैध बल्कि असंवैधानिक भी माना जाएगा।
किसान नेताओं और विधिक विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
किसान यूनियन के नेता राजवीर भाटी ने कहा:
“यह फैसला हमारे लिए ऐतिहासिक है। न्याय में देरी हुई, लेकिन अंततः हमें न्याय मिला।”
वहीं, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह आदेश भूमि अधिग्रहण अधिनियम को वास्तविक धरातल पर लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
नीति और भविष्य की राह
यह निर्णय सरकारों और शहरी नियोजन संस्थाओं को स्पष्ट संदेश देता है कि भूमि अधिग्रहण की कोई भी प्रक्रिया कानून के तहत पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए। अन्यथा, न्यायपालिका कड़ा रुख अपनाएगी।
संबंधित आर्टिकल्स पढ़ें:
📺 वीडियो: जानिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कानूनी विश्लेषण
देखें यह YouTube वीडियो: The Legal Observer
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मिसाल है कि विकास के नाम पर किसानों के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह केवल एक मुआवज़े का आदेश नहीं, बल्कि संवैधानिक न्याय का पुनर्पाठ है।