Sunday, May 18, 2025

Legal Education in India: An enduring challenge in a changing India

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भारत में कानून के छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन क्या हमारी Legal Education प्रणाली इस मांग के अनुरूप खुद को ढाल पा रही है? यह सवाल हाल ही में फिर चर्चा में आया जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता और उसमें सुधार की ज़रूरत पर चिंता जताई।


भारत में लगभग 1700 से अधिक लॉ कॉलेज हैं, जिनमें हर साल लाखों छात्र दाखिला लेते हैं। फिर भी गुणवत्ता, प्रशिक्षित संकाय, व्यावहारिक प्रशिक्षण और नैतिकता जैसे आवश्यक पहलुओं में कई संस्थान पिछड़ते नज़र आते हैं।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार:

  • 60% लॉ कॉलेजों के पास पर्याप्त पूर्णकालिक फैकल्टी नहीं हैं।
  • 40% संस्थानों में लाइब्रेरी और डिजिटल रिसोर्सेज अपर्याप्त हैं।
  • केवल 15% लॉ कॉलेज ही नैतिकता और मानवाधिकार जैसे विषयों को मुख्य पाठ्यक्रम में पढ़ाते हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू और CJI संजीव खन्ना के विचार

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 2024 के एक अधिवेशन में कहा था,

“हमारे देश को ऐसे वकील और न्यायाधीश चाहिए जो न केवल क़ानून के जानकार हों, बल्कि न्याय की भावना और संवेदनशीलता से भी परिपूर्ण हों।”

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भी हाल ही में कहा,

“न्याय केवल तकनीकी ज्ञान से नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों और नैतिक सोच से चलता है। कानून की शिक्षा को इन सिद्धांतों के साथ जोड़ना समय की मांग है।”


ऑनलाइन शिक्षा और नई चुनौतियाँ

कोविड-19 के बाद से ऑनलाइन कानूनी शिक्षा एक विकल्प बनी, लेकिन इसके भी अपने खतरे हैं:

  • व्यावहारिक कौशल जैसे मूट कोर्ट, इंटर्नशिप, और क्लाइंट काउंसलिंग ऑनलाइन माध्यम में समुचित रूप से नहीं हो पाते।
  • तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र पीछे छूट जाते हैं।

नीति और नियामक संस्थाओं की भूमिका

BCI और UGC देश में कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता तय करने वाले दो मुख्य निकाय हैं, लेकिन इनके बीच स्पष्ट समन्वय की कमी कई बार शिक्षा नीति को कमजोर करती है।

2023 में BCI ने प्रस्तावित किया था कि:

  • सभी लॉ कॉलेजों को 5-वर्षीय इंटीग्रेटेड कोर्स अपनाना चाहिए।
  • फैकल्टी योग्यता और अनुभव के लिए न्यूनतम मापदंड तय किए जाएं।

लेकिन इन सुझावों का जमीन पर असर अभी तक सीमित है।


न्यायिक प्रणाली की ज़रूरतों के अनुरूप पाठ्यक्रम

भारत में न्यायिक प्रणाली पर लंबित मामलों का भारी बोझ है (लगभग 5 करोड़ मामले पेंडिंग)। ऐसे में हमें ऐसे वकीलों और न्यायाधीशों की ज़रूरत है जो विवाद समाधान, मध्यस्थता (ADR), और तकनीकी कानूनों में दक्ष हों।

हालांकि, अधिकांश लॉ कॉलेज अभी भी पारंपरिक विषयों पर ही केंद्रित हैं और नए युग की मांगों जैसे साइबर लॉ, डेटा प्रोटेक्शन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून आदि को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करते।


सुधार की संभावनाएं और सुझाव

नीचे कुछ प्रमुख सुझाव दिए जा रहे हैं जो कानूनी शिक्षा को सुधारने में सहायक हो सकते हैं:

  1. फैकल्टी विकास कार्यक्रम: लॉ टीचर्स के लिए अनिवार्य ट्रेनिंग वर्कशॉप और रिसर्च प्रोत्साहन।
  2. मूट कोर्ट और क्लिनिकल लीगल एजुकेशन: हर कॉलेज में मूट कोर्ट और लीगल एड क्लीनिक अनिवार्य हों।
  3. नैतिकता और संवैधानिक मूल्य: पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल हों।
  4. इंटर-डिसिप्लिनरी पढ़ाई: लॉ को समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, और प्रौद्योगिकी से जोड़ना।
  5. ऑनलाइन और ऑफलाइन का संतुलन: हाईब्रिड मॉडल अपनाया जाए जिसमें व्यावहारिक शिक्षा की गुंजाइश बनी रहे।

जनजागरूकता और मीडिया की भूमिका

इस विषय पर The Legal Observer जैसी संस्थाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। कानूनी शिक्षा को लेकर आम जनता और छात्रों में जागरूकता फैलाने और नीति निर्माताओं तक आवाज़ पहुँचाने में मीडिया एक सेतु की भूमिका निभा सकता है।

🎥 इससे संबंधित विश्लेषण देखें: The Legal Observer YouTube Channel


निष्कर्ष

भारत में कानूनी शिक्षा का भविष्य तभी उज्ज्वल हो सकता है जब हम इसकी बुनियाद को मजबूत करें। केवल डिग्री देने वाले संस्थानों से हटकर, ऐसे केंद्रों की स्थापना ज़रूरी है जो न्याय, संवैधानिकता और सेवा भावना की असली समझ प्रदान कर सकें।

आज के समय में जहां कानून समाज का मुख्य आधार है, वहां कानूनी शिक्षा को केवल एक करियर विकल्प नहीं बल्कि समाज निर्माण का उपकरण मानना ज़रूरी है।


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✍ लेखक: The Legal Observer Team
🗓 प्रकाशित: मई 2025


Focus Keywords: कानूनी शिक्षा, कानून की पढ़ाई, BCI, UGC, CJI संजीव खन्ना, राष्ट्रपति मुर्मू, लॉ कॉलेज, नीति सुधार

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