Sunday, May 18, 2025

Pegasus Spyware Case: नेशनल सिक्योरिटी के लिए स्पाइवेयर का इस्तेमाल गलत नहीं — सुप्रीम कोर्ट

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Pegasus Spyware: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पेगासस जैसे स्पाइवेयर का होना गलत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: स्पाइवेयर का होना नहीं, दुरुपयोग असली चिंता

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को Pegasus Spyware मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने कहा कि किसी देश के पास स्पाइवेयर होना अपने आप में कोई गलत बात नहीं है। असली सवाल यह है कि उसका इस्तेमाल कैसे और किनके खिलाफ किया जाता है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जो 2021 में दाखिल की गई थीं। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि इजरायली स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और नेताओं की निगरानी के लिए किया गया। अदालत ने दोहराया कि कोई भी देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता।

“स्पाइवेयर होना गलत नहीं है” — जस्टिस सूर्यकांत

सीनियर एडवोकेट दिनेश द्विवेदी की दलील पर जवाब देते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर कोई देश स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रहा है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। असली सवाल है कि उसका इस्तेमाल किसके खिलाफ किया गया। हम राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता नहीं कर सकते।”

द्विवेदी ने यह तर्क दिया कि असली मुद्दा यह है कि क्या सरकार के पास पेगासस था और क्या वह इसका इस्तेमाल कर रही थी।

प्राइवेसी बनाम सुरक्षा: संवैधानिक संतुलन

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “आतंकवादी निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते।” इस पर जस्टिस कांत ने टिप्पणी की, “एक आम नागरिक जिसकी निजता संविधान द्वारा संरक्षित है, उसे पूरी सुरक्षा दी जाएगी।”

यह बहस इस बात की ओर इशारा करती है कि नागरिक अधिकार और राज्य की सुरक्षा के बीच कैसे संतुलन कायम किया जाए।

कपिल सिब्बल ने अमेरिका का उदाहरण रखा

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि इजरायली फर्म NSO Group ने व्हाट्सएप हैक करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया था। उन्होंने यह भी बताया कि इस फैसले में भारत को उन देशों में शामिल किया गया था जो संभावित रूप से प्रभावित हुए थे।

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मामले की जांच के लिए जस्टिस रवींद्रन की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर चुका है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे मामला सार्वजनिक बहस का विषय बन जाएगा।

“हां, व्यक्तिगत चिंताओं पर बात हो सकती है,” उन्होंने कहा, “लेकिन इस तरह की रिपोर्ट को सड़कों पर चर्चा का दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता।”


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