Judge Bela Trivedi
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लेडी वकील पर ऐक्शन – क्यों भावुक हो उठीं जस्टिस बेला त्रिवेदी?

आरोप है कि सुंदरम ने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना करते हुए न केवल आत्मसमर्पण की प्रक्रिया को टाल दिया, बल्कि आवश्यक तथ्यों को छिपाते हुए दूसरी बार विशेष अनुमति याचिका (SLP) भी दायर की।

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी बुधवार को उस समय भावुक हो गईं जब उन्हें एक महिला वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि अपने न्यायिक करियर के अंतिम पड़ाव पर इस तरह के कठोर निर्णय लेना उनके लिए बेहद पीड़ादायक है, लेकिन वे किसी भी प्रकार के अनुचित आचरण को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ एक आपराधिक मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें वकील पी. सोमा सुंदरम पर गंभीर आरोप लगे थे। कोर्ट ने पहले ही उन्हें तथ्यों को छिपाने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी आत्मसमर्पण न कराने को लेकर फटकार लगाई थी।

मामला आखिर क्या था?

इस केस में वकील सुंदरम ने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद अपने मुवक्किल को आत्मसमर्पण नहीं कराया। इतना ही नहीं, उन्होंने जानबूझकर तथ्यों को छिपाते हुए दोबारा SLP (विशेष अनुमति याचिका) दाखिल की। आरोपी व्यक्ति आठ महीनों तक आत्मसमर्पण से बचता रहा। जब यह तथ्य सामने आया, तो कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया और वकील सुंदरम को फटकार लगाई। हालाँकि, उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी लेकिन कोर्ट ने उसे स्वीकार नहीं किया।

क्या कोर्ट से नरमी की अपील की गई?

सुनवाई के दौरान बार के कई वरिष्ठ सदस्यों ने कोर्ट से इस मामले में कुछ नरमी दिखाने की अपील की। इस पर जस्टिस त्रिवेदी ने दो टूक जवाब दिया, “माफी माँगना सबसे आसान विकल्प है। पिछली बार भी बिना शर्त माफी माँगी गई थी।” उन्होंने यह भी कहा कि बार बार माफ़ी मांगकर कोर्ट पर दबाव डालने की कोशिश की जाती है, जो उचित नहीं है।

क्या न्याय के लिए कठोरता ज़रूरी हो गई है?

कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए, जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कठिन समय है, क्योंकि करियर के अंतिम चरण में उन्हें ऐसे कठोर कदम उठाने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं अन्याय के सामने चुप नहीं रह सकती। अगर कोई और यही गलती करता, तो क्या हम माफ़ी स्वीकार करते? सिर्फ इसलिए कि आप AOR हैं, आपको विशेष छूट नहीं मिल सकती।”

यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस त्रिवेदी ने बार के गिरते नैतिक स्तर को लेकर चिंता जताई हो। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने पहले भी SCAORA और SCBA से सशक्त प्रस्ताव माँगे थे, लेकिन संस्थानिक समर्थन नहीं मिला।